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लेगा तबतक तेरी व्याधि नहीं जायगी । इसलिये विवेक पूर्वक हितकर और अहितकर कौन है इसका बराबर पत्ता लगा ले । इस ग्रन्थकर्ता के वैद्यपन में तुझे विश्वास हो तो इस ग्रन्थ का अवलोकन कर । तूं बराबर विचार करेगा तो इस प्रन्थ में उसका निदान तुझे मिल जायगा । इस ग्रन्थकारने चिकित्सा भी बताई है उसको ध्यान में रखकर ढूंढ लेना । वस्तुस्वरूप समझने की कितनी भावश्यक्ता है, यह फिर स्पष्ट होती जायगी । जबतक वस्तुस्वरूप न समझा जावे तबतक समता प्राप्त नहीं हो सकती
और समता प्राप्त हुए बिना व्याधि का नाश नहीं हो सकता। अंत: समताप्राप्ति के इस तीसरे उपाय पर अनेक प्रकार से जोर दिया गया है । पारमार्थिक वैद्यराज के बताये हुए निदान पर बहुत ध्यान देने की आवश्यक्ता है, यह फिर विशेषरूप से प्रगट होगा ॥ २० ॥ वस्तु ग्रहण करने से पहले विचार करने की
आवश्यकता कृति हि सर्व परिणामरम्यं,
विचार्य गृह्णाति चिरस्थितीह। भवान्तरेऽनन्तसुखाप्तये,
तदात्मन् किमाचारमिमं जहासि ॥२१॥
" इस संसार में जो विचारशील पुरुष होते हैं वे तो विचार कर के ऐसी वस्तु को ग्रहण करते हैं कि जो लाखों वों तक चलती है और परिणाम में भी सुन्दर होती है। तो फिर हे चेतन ! इस भव के बाद अनन्तसुख दिलानेवाले