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की तीव्र भावना उत्पन्न होती है और इस भावना के होने पर वे बहुधा तीर्थकरनाम का कर्मबन्धन करते हैं। रोम कैंप उठे ऐसे उपद्रव करनेवाले 'संगम' पर भगवान श्री महावीरस्वामी की कैसी उत्कृष्ट करुणा! अपने को कष्ट हुआ यह बात तो उनके मन में भी नहीं आई, परन्तु अपने लिये ऐसे बिचार लाने से वह जीव दुःखी होगा, ऐसे विचारों से ही उनका हृदय करुणा से भर आया और नेत्रों में से आसुओं की धारा बह चली।
___ करुणा करनेवाले प्राणी की दृष्टि बहुत विशाल होती है । वह ' आत्मवत् सर्वभूतेषु ' अपने समान सब प्राणियों को देखता है और दूसरे को दुःखी देखकर उसका हृदय भस्मीभूत होजाता है। उसको दुःख में से किस प्रकार छुड़ावे ऐसा विचार उसके हृदय में बार बार आता रहता है। शेक्सपियर एक स्थान पर 'Merchant of Venice' (मर्चेट आफ बेनिस) में कहता है कि करुणा एक विचित्र आशिर्वाद है । यह लेने तथा देनेवाले दोनों को आनन्द पहुंचाता है । यह बात विचारने योग्य है। पैसों में एक को लाभ होता है तो प्रायः दूसरे को हानि होती है, किन्तु करुणा में तो दोनों को लाभ ही होता है। करुणा करनेवाला दूसरों के दुःख दूर करने का विचार मन में जाता है इस से वह प्राणी स्वयं भी सुखी होता है । कारण सच्चे हृदय से परोपकार करनेवाले प्राणी को दुःख होता ही नहीं। शान्तसुधारस में कहा है:--
परदुःखप्रतीकारमेवं, ध्यायंति ये हृदि । . लभन्ते निर्विकारं ते, सुखमायतिसुन्दरम् ॥ . “ो इसप्रकार दूसरों के दुःखों का विचार हृदय में