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श्राविकाओं-जिन को श्री वीरपरमात्मा भी धर्मलाभ कहलाते थेऐसे भाचरत्नों को धन्य है ! । संतोष, सभ्य, अनुकम्पा, नम्रता, विनय, दाक्षिण्य, दान आदि अनेक गुणों से अलंकृत नरवीर बहुत हो गये हैं और कोई कोई तो अभी भी पृथ्वी को शोभित करते हैं, इन सब को धन्य है ! महात्मा पुरुषों के चरित्रों अथवा जीवनवृत्तान्तों को वांचकर अथवा सुनकर मन में उनके गुणों के लिये बहुतमान करना यह प्रमोद भावना है । एक गुण को जो सर्वाश में प्राप्त कर लेवे तो सब गुण उस के पीछे पीछे श्रेणीबद्ध स्वयं चले आते हैं, यह एक सिद्ध नियम है । गुस प्राप्त करने का , सिद्ध उपाय यह है कि जिन महात्मा पुरुषोंने उन गुणों को प्राप्त किया हो उन की भावना शुद्ध स्वरूप में हृदयमन्दिर में स्थापित करना । इस प्रकार भावना रखने से गुणपर राग हो जाता है
और वे गुण न हो तो प्राप्त करने की इच्छा होती है, और किन्चित् मात्र वीर्य फोड़ने से वे गुण प्राप्त भी हो जाते हैं; तथा भावना भाते समय यदि वे गुण अपने में हों तो वे गुण विशेष स्वच्छ हो जाते हैं । अमुक प्राणी को बहुत मान मिलता है यह जान कर असंतोष न लाना एवं उसकी ओर इर्ष्या न करना परन्तु उस का गुणोत्कर्ष करना यह ही गुण प्राप्त करने का साधन है । इस प्रकार विचार कर के तीर्थकर महाराज का मैत्रीभाव, गजसुकुमालादिक की क्षमा, विजयसेठ का ब्रह्मचर्य, श्रीपालराजा का दाक्षिण्य, सीता का सतीत्व और रेवती का भक्तिभाव इत्यादि की ओर ध्यान लगाना और स्तुति योग्य गुणों की तथा गुणवानों की प्रशंसा कर जिह्वा की एवं कान की अनु. क्रम से गुणानुवाद और गुणश्रवण से सफलता करनी चाहिये ।
तत्त्वार्थ भाष्यकार श्रीउमास्वाति महाराज लिखते हैं कि