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और गच्छाधिपतिका भार मात्र ४ वर्ष ही वहन किया, यद्यपि यह सम्भव है कि गुरुकी वृद्धावस्थामें उन्होंने ही गच्छकी व्यव. स्थापर गुरुमहाराजके समीप रहकर पूर्णतया लक्ष्य दिया होगा ।
ये सूरिमहाराज असाधारण विद्वान थे । उनकी स्मरणशक्ति बहुत तेजस्वी और शास्त्रका विज्ञान अद्भुत था । वे एक सहस्त्र अवधान कर सकते थे । एक हा साथ भिन्न भिन्न एक हजार बाबतोंपर ध्यान देना और उनमेंसे यदि किसी भी भागको प्रछा जावे तो उसे बतलादेना यह ज्ञानावरणीय कर्मके प्रबल क्षयोपशमसे प्राप्त हुई अद्भुत स्मरणशक्ति और मानसिक बलका नमूना है। इस जमाने में अधिकसे अधिक सौ अवधान करनेवाले सुने जाते हैं । जब कि कई आठ दश या पन्द्रह अवधान ही करनेवाले पाये जाते हैं, उनकी ओर भी विद्वान् लोग अपूर्व मानकी दृष्टिसे देखते हैं, तो फिर ऐसे हजार अवधान करनेवालेकी कैसी अद्भुत शक्ति होगी उसका ध्यान आना भी अति कठिन है। आजन्म ब्रह्मचर्य और मनपर अपूर्व काबू बिना ऐसी शक्ति प्राप्त होना अति कठिन है। वे ग्रन्थोंमें सहस्रावधानो' के रूपसे प्रसिद्ध हुये हैं । उनका ज्ञान कितना अपूर्व था इसका विचार करनेके लिये इतिहासमें अन्य दो, हकीकतोंका वर्णन है। दक्षिण देशके कवियोंने उनको 'काली सरस्वती का नाम दिया था। अन्य कोमके विद्वानों द्वारा बिना अपूर्व विद्वत्ताके ऐसा उपनाम प्राप्त करना असम्भव है, अपितु दक्षिणके विद्वान् तो बहुत सोच विचार करके ही किसीको पदवी प्रदान करते हैं। दक्षिण देशके कवि. योंकी प्रख्याति भर्तृहरिके समयसे ही चली आती है। वे एक स्थानपर कहते हैं कि " अग्रे गीतं सरसकवयः पार्श्वतो दक्षिणात्यः" ( मुंहके सामने गीत गाये जाते हों और दोनों ओर दक्षिण देशके कवि बिरुदावली बोलते हों आदि )। यह बराबर समझमें नहीं पाता कि इस उपाधिका क्या अर्थ है' ? परन्तु कवित्व शक्तिमें अदभुत चातुय्ये बतानेवालेको यह पदवीप्रदान की जाती है ऐसा प्रतीत होता है। ये जितने कवित्वशक्तिमें निपुण थे उससे कई
१. सरस्वतीका वर्ण धवल है, परन्तु मुनिसुन्दरसूरि महाराजका वर्ण काला था इससे मानो साक्षात् सरस्वती अवतार श्याम वर्णमें हों ऐसी उपाधि उनको मिली थी ऐसा पं. गंभीरविजयजीका अभिप्राय है।