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४ स्तोत्ररत्नकोष-इसमें अनेको स्तोत्र सूरिमहाराजके बनाये हुए हैं। इसमेंके कितने ही श्लोक प्रगट: हो गये हैं । यह ग्रन्थ अभा तक मेरे देखने में नहीं पाया है इससे इसपर विशेष विवेचन नहीं किया जा सकता है। परन्तु सूरिमहाराजका संस्कृत भाषापर अधिकार देखते हुए ऐसा अनुमान होता है कि ये स्तोत्र काव्यचमत्कृतिके नमूने होगें।
५ मित्रचतुष्क कथा-इसमें चार मित्रोंकी कथा है। यह प्रन्थ छोटा होनेपर भी उपदेशक है और लभ्य है।
६ शांतिकरस्तोत्र-शिवपुर अथवा देवकुलपट्टनमें महामारीके उपद्रव होनेपर श्रीसंघके आग्रहसे यह पवित्र स्तोत्र बना. कर संघमेंसे उपद्रवको हठानेका प्रयत्न किया जाना कहा जाता है। यह स्तोत्र मात्र तेरह अथवा चोदह गाथाओंका है, परन्तु जैन वर्गको यह इतना अधिक प्रिय होगया कि उसको प्रत्येक समय गिननेके स्तोत्रोंमें स्थान दिया गया है। इस शान्तिकर स्तोत्रमें काव्यचमत्कृतिके अतिरिक्त मंत्रवमत्कृति भी है। अक्षरोंके संयोगमें चमत्कार भरा हुआ है ऐसी आजकाल पाश्चात्य लोगोंकी भी धारणा है । ऐसे अक्षरसंयोगोंद्वारा शासनके अधिष्ठाता देवदेवियोंकी स्तुति, आवाहन नामस्मरण, आदिका इन स्तोत्रोंमें समावेश कराया गया है।
७ पाक्षिकसित्तरी—यह एक छोटासा प्रकरण है । इसमें लगभग बाईस गाथायें हैं। इसमें पाक्षिक पर्व (पख्खी )-चउदशके दिन करना चाहिये उसका निर्णय बतलाया है । ग्रन्थ विधिवादका है। यह ग्रन्थमें मेरे देखने में नहीं आया परन्तु लभ्य है।
.८ अंगुलसित्तरी-ऊपरोक्तानुसार यह भी एक छोटासा प्रकरण है जिसको अभी तक में नहीं देख पाया हैं। इसमें उत्सें. धागुल, प्रमाणांगुल और प्रात्मांगुल सम्बन्धी विचार. बतलाये गये हैं।
९ वनस्पतिसित्तरी-यह भी छोटासा प्रकरण है। इसमें क्या विषय है इसका पता नहीं । परन्तु प्रत्येक और साधारण वनस्पतिके लक्षण और उसके भेद आदिका स्वरूप होना सम्भव है।