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तो एक विचित्र प्रकार का ही आनन्द देता है कि जिस से कोई कभी नहीं अघाता । वीर, करुणा और हास्यरस पार्थिव हैं, दूसरों को भोगाभिलाषी बनाते हैं तथा परिणाम शून्य हैं । शान्तरस इन सबों से निराला ही है । परमार्थिक विषय को प्रतिपादन करनेवाला तथा उसीका उपदेश करनेवाला होने से यह रस प्रधानतया उपदेश के योग्य है । अन्य शब्दों में कहा जाय तो यह रस परमार्थ के अभिलाषियों को अत्यन्त प्रिय है। इस लिये यह रस उस के अधिकारी की अपेक्षा से भी अधिक उत्कृष्ट है; क्योंकि इसके आधिकारी प्राकृत जनसमूह की सामान्य स्थिति से किसी अथवा बहु अंश में ऊंचे होते हैं।
. ३. शान्तरस सब रसों का सार है । यद्यपि हास्यादि रसों को कवियोंने उत्कृष्ट स्थान प्रदान किया है किन्तु उसका स्थिर रहना असम्भव प्रतीत होता है। शाम्तरस को कितने ही पुरुषोंने वास्तविक सच्चा रस ही सिद्ध नहीं किया है अपितु इसे एक उत्कृष्ट रस घोषित किया है । जो इस रस की महिमा को जानते हैं, अनुभव करते हैं उनको हास्यादि रसों का स्थूलप्रतीत होना निसन्देह ही है । कई वक्ताओंने शान्तरस को प्रधान रस बतलाया है इसलिये इसे यहां भी रसाधिराज कहा गया है।
- इन तीनों कारणों से शान्तरस का उत्कृष्टपन बतलाया गया है । इन में परस्पर कार्यकारणभाव है । आलोक परलोक के अनन्त आनंद का साधन शान्तरस है इसलिये यह परमार्थिक उपदेश के योग्य है। इन्हीं दोनों कारणों से यह रसाधिराज कहा गया है।
ग्रन्थ के आदि में मंगल, विषय, प्रयोजन, सम्बन्ध और