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अधिकगुणे तर्कन्यायमें भी निपुण थे । उनको मुज्जफरखान बादशाहकी ओरसे 'वादी गोकुलषंढ़' की उपाधि मिली थी । वादिये रूप गोकुलके समूहमें वे पतिरूप थे अर्थात् वे अनेकों वादियोंको अपने प्राधिन रखकर परास्त करनेमें शक्तिशाली थे ऐसा ईस उपाधिसे सूचित होता है । इसीप्रकार उनकी स्मरणशक्ति, कवित्वशक्ति और तर्कशक्ति बहुत विकसित थी ऐसा जान पड़ता है। स्मरणशक्ति, कल्पनाशक्ति और न्यायशक्ति ( Imagination and Reasoning Faculty ) ये तीनों मानसिक शक्तिये हैं और ये तीनों एकही पुरुषमें विशेषरूपसे विकस्वर हो ऐसे दृष्टान्त विरले ही देखनेमें आते हैं, लगभग देखे ही नहीं जाते। यदि ऐसा भी कह दिया जाय तो कुछ अनुचित न होगा तीनोंमेंसे एक आध न्यूनाधिक विकसित हो ऐसा तो बहुधा देखा जाता है, परन्तु तीनोंका एकत्र योग बहुत अल्प स्थानोंमें होता है। __इन महात्मा सूरिमहाराजकी अद्भुत शक्तियोंके सम्बन्धमें उनके समयके आसपास होनेवाले विद्वान कैसे २ अभिप्राय बतला गये हैं उनका जानना प्रासंगिक हो जाता है । उन्हींके समकालीन श्री प्रतिष्ठासोम नामके साधु सोमसौभाग्य काव्यके दशवें सगेमें लिखते हैं किश्रीसोमसुन्दरयुगोत्तमसूरिपट्टे, श्रीमान् रराज मुनिसुन्दरसूरिराजः । श्रीसूरिमन्त्रवरसंस्मरणैकशक्ति-य॑स्याभवद् भुवनविस्मयदानदक्षा ॥ श्रीरोहिणीति विदिते नगरे ततीति, पश्चात्कृते किल चमत्कृतहृत्पुरेशः । ऊरीचकार मृगयाकरणे निषेधं, प्रावर्तयन्निखिलनीवति चाप्यमारिम् ॥ प्रागेव देवकुलपाटकपत्तने यो, मारेरुपद्रवदलं दलयांचकार ।। श्रीशान्तिकृत्स्तवनतोऽवनतोत्तमाङ्गभूपालमौलिमणिघृष्टपदारविन्दः॥ श्रीमानदेवशुचिमानसमानतुङ्गमुख्याः प्रभाविकगुरून् स्मृतिमानयद्यः। श्रीशासनाभ्युदयदप्रथितावदातैस्तैस्तैश्चमत्कृतिकरैः कुमुदावदातैः ॥
अर्थ-युगप्रधान श्री सोमसुन्दरसूरिके पाटपर मुनिसुन्दरसूरि आरोहित हुए उनकी प्रधान सूरिमन्त्र स्मरण करनेकी शक्ति तीनों भवनोंको विस्मयका दान देनेमें दक्ष थी । श्री रोहिणी नगरमें मरकीके उप
१. रोहिणी नगरसे आबुके निकटतस्थ रोहिता-रोहिा नामक वर्तमान नगरका बोध होता है ( गंभीरविजयजी ). ..