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नोट कर देने योग्य है । वर्णन करनेवाले स्वयं देखनेवाले थे इससे इसमें अतिशयोक्तिका होना बहुत कम सम्भव है । यह हकीकत सोमसौभाग्य काव्यके छट्ठे सर्ग में बतलाई गई है। उसके प्रारंभिक भागका सारांश निम्न लिखितानुसार है:
देव सुन्दरसूरिकै स्वर्गारोहन के पश्चात् गच्छका भार सोमसुन्दरसूरके सिरपर गिरा । वे महाप्रतापी विद्वान् थे । इन सूरिराजके दर्शन करने से पूर्वके गौतम, जम्बू, स्थूलभद्र आदि महात्माओंका स्मरण हो आता था । गुरुमहाराजने घूमते फिरते एक बड़े नगरमें पदार्पण किया ( नगरका नाम समझ में नही आसकता, कदाच वह 'वृद्ध नामका नगर हो तो भी कुछ शंका नहीं है; परन्तु इस नामसे आजकलका नाम नहीं समझा जा सकता है ) यह नगर बड़ा रमणीय था ( कविने इस नगरका अद्भुत वर्णन किया है ) इस नगर में आदीश्वर प्रभू तथा महावीर परमात्माके दो भव्य बिहार थे । इन्द्रकी अमरावती जैसे इस श्रेष्ठ और सम्पत्तिके निधानरुप नगर में लक्ष्मीवान् और अपनी बुद्धिसे वृद्धित एक देवराज नामक शेठ निवास करता था । इस शेठके हेमराज नामका लघु
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१. यह वृद्ध नामक नगर गुजरातमें वींसनगर के समीपका आधुनिक बडनगर शहर है ऐसा मेरे एक विद्वान् मित्रने कहा है । उसकी पुष्टिमें उसने जो जो कारण बतलाये हैं वे बहुत विश्वासजनक है। वे निम्न लिखित हैं । मूल श्लोक में जो हकीकत है इससे यह भाव प्रदर्शित होता है । स वृद्धः गुरुराट् वृद्धं नगरं आजगाम इस ग्रंथ के छठे सर्गके तेरहवें श्लोक में लिखे अनुसार बड़नगर के मध्यभाग में अब तक भी आदीश्वर भगवान् तथा जीवीस्वामी के दो चैत्य मौजूद हैं और वह संप्रति राजा द्वारा निर्मित कराये हुये कहे जाते हैं । अपितु सातवें श्लोक में ' समेला ' तालाव की बात कही है वह तालाव भी इस समय तक मौजूद है । वह बहुत बड़ा है और उसका नाम भी समेला ही है, वह पत्थरोंका बना हुआ है और उसके चारों ओर बेदिकायें हैं, तालावर अनेकों आम्रवृक्ष हैं । तदुपरान्त उसी ग्रन्थके उसी सर्गके पन्द्रहवे श्लोक में कहे अनुसार बडनगर में ३६० तालाव हैं परन्तु समयान्तरसे वे छिछले होगये हैं । अपितु अनेक कुथें भी हैं। वर्णनमें लिखाअनुसार आम्र और रेणके भी वहाँ अनेकों वृक्ष हैं । इसप्रकार सब वर्णन मिलने से वृद्धनगर आधुनिक वड़नगर ही होगा ऐसा माननेके अनेकों कारण हैं।