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वस्तुस्वरूपको विचारनेकी अत्यन्त आवश्यकता है। प्रमादके विषयमें यहां अधिक नहीं लिखा गया है । अन्तिम रहस्यमें और भूमिकामें उसका विशेष उल्लेख किया गया है।
सातवां कषायनिग्रह अधिकार है । इस अधिकारमें लिखी हुई हकीकत हमारे हररोजके अनुभवमें आती है और कर्मप्रकृतियोंके
ग्रहण करनेके मुख्य द्वारोंमेंसे यह एक द्वार है। ७ कषाय. कषायसे ही संसारका लाभ और उसकी वृद्धि
होती है और वह इस जीवके सम्बन्धमें एक बड़ा भारी फेरफार कर सकता है । क्रोध, मान, माया और लोभ ये उसके चार भेद हैं। प्रातःकालसे लेकर रात्रीतक कषाय करनेके अनेकों प्रसंग उपस्थित होते हैं। किसीपर क्रोध आजाता है, किसी समय अपनी बड़ी बड़ी डींग ( आत्म-प्रशंसा ) हाँकनेमें प्रानन्दका अनुभव होता है, किसी समय बगवृत्ति धारण की जाती है और कभी पैसोंकी माला फेरी जाती है । ये चारों कषाय अनेक रूपोंमें प्रगट होकर इस जीवको किस किस प्रकारसे नचाते रहते हैं इन सबका विशेष विवेचन इस अधिकारमें किया गया है । इन चारों कषायोंमें ऐसी असाधारण शक्ति होती है कि यदि इनमेंसे एक भी अपने पूर्ण जोशमें हो तो यह जीव चाहे जितनी धर्मक्रियायें क्यों न करे, चाहे जितनी विद्या क्यों न प्राप्त करें, चाहे जितने भी तप क्यों न कर डाले; परन्तु यह सबको निरर्थक बना देता है और अन्तमें जीवका अधःपात कराता है। इन कारणोंसे कषायके निग्रह करनेकी अत्यन्त आवश्यकता है । मनोविकारके वशीभूत होनेवाले प्राणीका जीवन लगभग निरर्थक ही है, ऐसा ऊपर ऊपरकी द्रष्टिसे हमको प्रतीत होता है, परन्तु मनोविकार कैसे और किस प्रकारसे काम करनेवाला होता है, इनका जबतक कुछ गहरे उतरकर हम स्वयं स्वरूप न देखले तबतक यह सत्य हकीकत भी एकमात्र बातके रूपमें ही रहती है। कषायको ठीकठीक समझ कर, उसके करनेके प्रसंगोंके उपस्थित होनेपर उसका निग्रह करना
और उससे न जीते जाकर उसपर अपना आधिपत्य जमा लेनेका हो लक्ष्य निरन्तर अपने हृदयमें रखना चाहिये । कषायके प्रत्येक विषयपर बड़े बड़े लेख लिखे जासकते हैं और अन्यत्र ऐसा प्रयास भी किया गया है, इसलिये इस अधिकारके विवेचनमें प्रन्थके