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है, ऐसा हमारा प्रत्यक्ष अनुभव है । संसारमें जो जो हकीकतें होती है उनका एक मात्र ऊपर ऊपरसे ही विचार कर लेनेकी हमारी टेव पड़ जानेसे कई जीव इसका गहरा विचार नहीं कर सकते हैं । एक पुरुषकी मृत्यु पर कई पुरुष कहेंगे कि बहुत बुरा हुआ आदि, परन्तु क्या बुरा हुआ ? इसका विचार भी नहीं करेंगे । शरीर और आत्माका वियोग जो कि स्वाभाविक धर्म है यह ही हुआ है ऐसा पृथक्करण करनेकी उनकी अभिलाषा कदापि न होगी। संसारकी सामान्य बातोंमें भी ऐसा अन्तिम रहस्य शोधनेकी टेव डालना अत्यन्त आवश्यक है।
छठे प्रमादत्यागाधिकारमें पंचेन्द्रियके विषयोंका स्वरूप अत्यन्त विद्वत्तासे बतलोया गया है । यह जीव स्थूल इन्द्रियसुखोंमें आ
सक्त हो जाता है । अच्छे अच्छे पदार्थ खानेमें, ६ प्रमाद. सेन्ट लवण्डर सुंघनेमें, हार्मोनियम पीओना सुनने में,
सुन्दर स्त्रियोंका रूप विकार हष्टिसे देखनेमें और उनके साथ विषयसेवन करने में आनन्द मानता है । पांच इन्द्रियोंके विषय अनेक प्रकारके हैं, जिनका अनुभव दिनप्रतिदिन होता रहता है। इनमें क्या सुख है ? क्या माना गया है ? उनमें सच्चा तत्त्व क्या है ? सच्चे सुखका क्या स्वरूप है ? वह इस जीवकी समझमें क्यों नहीं पाता है ? इन स्थूल सुखोंको भोगने समय कितना और कैसा सुख देते हैं ? परिणाममें इनसे क्या होता है ? आत्मिक सुख और स्थूल सुखमें क्या भिन्नता है ? इस विषयपर अत्यन्त प्रभावकारक विवेचन इस अधिकारमें किया गया है। इन्द्रियों के विषय में इस जीवकी कितनी अधिक आसक्ति होती है कि इसके किसी भी प्रसंगके आजानेपर यदि खुदको विशेष ज्ञान
और दृढ श्रद्वा न हो तो यह उनमें मग्न हो जाता है । उस प्रसंग पर इसे इतना भी भान नहीं रहता है कि संसारमें प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाला मेरे जैसा प्रतिष्ठित माना जानेवाला पुरुष ऐसी बालक्रिडाये क्यों कर करता है ? एक समझदार पुरुष भी एकान्त स्थानमें स्त्रीके साथ किस विचित्रता के साथ व्यवहार करता है उसकी पाठक स्वयं कल्पना कर सकते हैं । ऐसी स्थिति से उस समय और भविष्य में इस जोवको अत्यन्त हानि उठानी पढ़ती है जिसको दूर करनेका ही यहां उपदेश किया गया है। ऐसे विषयोंमें