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Honours and wealth are bubles to the wise.
" यद्यपि इस जीवनमें विशुद्ध जीवोंका यथोचित प्रतिकार नहीं होता है, संयोगानुसार न्यूनाधिकरूपमें मिलता है; परंतु तुझे तो सत्य और उचित बातके अतिरिक्त अन्य किसी भी वस्तुका विचार नहीं करना चाहिये । बुद्धिमान पुरुषोंके मन तो मान-पान और पैसे आदि सुन्दर दृष्टिगोचर होनेवाले किन्तु मूल्यरहित अनुपयोगी वस्तुओंके सदृश हैं।" यह छोटासा बाक्य अत्यन्त रहस्यमय है, धनममत्वमोचन अधिकार अत्यन्त विचार पूर्वक पढ़ने योग्य है।
पांचवां देहममत्वमोचन अधिकारमें भी दूसरे अधिकारसे प्रारम्भ हुए लय( Spirit )को चाल रक्खा गया है । इस शरीर.
पर असाधारण प्रेम रख कर उसको प्रत्येक समय ५. देहममत्व नाजुक बनानेकी चेष्टा नही करनी चाहिये अथवा
उसे शोभित वस्तुओंके प्राडम्बरसे आभूषित न करना चाहिये। इसको आत्मिक धोके पालन करनेमें सहायभूत समझ कर इससे जितना हो सके उतना शुभ कार्य कर लेना चाहिये । इन शुभ कार्योंके करने योग्य मात्र उसकी उत्तम स्थिति होना चाहिये । इससे यह तात्पर्य कदापि नही है कि शरीरकी ओर सदैव उपेक्षाभाव रखना, परन्तु उसकी ही ओर अत्यन्त ध्यान लगाकर उसके प्रेरनार-उसमें चैतन्य स्वरूपसे रहनेवाले आत्माको भूल जाना ऐसा कभी नहीं होना चाहिये । इस अधि. कारमें स्वदेह और परदेह दोनोंपर ममत्व न रखनेको गर्भित आशय होना प्रतीत होता है। शरीरको अशुचिमय समझनेसे और उस पर. योग्य विचार करनेसे उसको वास्तविक स्वरूप और उससे सम्बन्ध रखनेवाला उसके साथ व्यवहार करनेका योग्य मार्ग उत्तमतया ध्यानमें आ जाता है । इस पांचवें अधिकारका विषय इस शारीरिक सुखमें मस्त बनानेमले वर्तमान युगमें पसंद न आना सम्भव है। परन्तु इसके भयसे सूरिमहाराज तो वस्तुस्वरूपको समझानेके अपने कर्तव्यको कदापि नहीं भूल सकते हैं। वर्तमान कालकी खाने-पीने तथा व्यवहारमें लोनेकी रीति शरीरको निरंतर अपना होना सिखलाती है कि जो वस्तुस्थितिसे नितान्त विरुद्ध