Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपोद्घातरूप दृष्टान्त कथा अदृष्ट-मूलपर्यन्त नगर
१. *इस संसार में 'अदृष्ट-मूल-पर्यन्त' नामक नगर उच्च अट्टालिकाओं और मनोहर भवनों से सुशोभित व अनन्त प्राणियों से भरा हुआ है, जो सनातन है। इसमें अनेक प्रकार की पण्य (वस्तुओं) और महामूल्यवान रत्नों से भरी दुकानों वाले आदि-अन्त रहित अनेक बाजार हैं । यह नगर सुन्दरतम एवं विचित्र चित्रों से चित्रित देवालयों से सुशोभित है जिन्हें बच्चे बढ़े एकटक देखते रह जाते हैं। यह नगर क्रीड़ा कलरव करने वाले बालकों की ध्वनि से गुजरति है। यह नगर अलंध्य तथा तुग (उच्च) दुर्ग से घिरा हुआ है । इस नगर की रचना ऐसी है कि मध्य भाग अति गंभीर और दुर्गम है, क्योंकि नगर के चारों ओर बड़ी-बड़ी खाईयाँ खुदी हई हैं। सभी लोगों को आश्चर्यचकित करने वाले चपल लहरों से गुजरित अनेक छोटे-बड़े सरोवरों से यह नगर सुशोभित है। नगर के किले के पास ही चारों अोर अति-गहन भयंकर अनेक अन्धकूप भी शत्रुओं को त्रास देने के लिए निर्मित हैं। यह महानगर अनेक प्रकार के फल-फूलों से पल्लवित और भ्रमरों से गुजित, कई देववनों से परिवेष्टित और अनेकानेक आश्चर्यों तथा चमत्कारों से परिपूर्ण है।
[११२-१२०] निष्पुण्यक दरिद्री
२. इस नगर में एक निष्पुण्यक नामक गरीब ब्राह्मण रहता था, जो महोदर, महादुर्बुद्धि और स्वजन सम्बन्धियों से रहित था। वह अर्थ तथा पुरुषार्थ दोनों से हो हीन था। उसका शरीर भूख से जीर्ण होकर मात्र अस्थि-पंजर रह गया था। वह मलिन निन्दनीय और गरीबी से ग्रस्त था । वह निरन्तर फूटा हुमा मिट्टी का पात्र लेकर घर-घर भीख माँगता था। वह ऐसा अनाथ था कि उसे सोने के लिए बिछौना तक उपलब्ध नहीं था, नमीन पर सोते-सोते उसकी पसलियाँ घिस गई थीं और
* यह दृष्टान्त कथा मूल में १-४० अनुच्छेदों में दी गई है। आगे इसी की दान्तिक
योजना---कथा का उपनय भी तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया है, अतः इन अनुच्छेदों पर भी १-४० की संख्या दी गई है । जिससे अनुच्छेदवार तुलना करने में सरलता रहे ।
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