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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
करें। साथ ही दुर्जनों की संगति से प्राणियों में क्या-क्या दूषण उत्पन्न होते हैं ? क्या-क्या हानि होती है ? यह भी आप उसे विशेष रूप से बतलाइये, जिससे इसको सत्य मार्ग का सम्यक् प्रकार से ज्ञान हो सके । यदि यह सदागम की भक्ति करे और महामोह एवं परिग्रह की दुष्ट संगति छोड़ दे तो इसे इस भव तथा पर भव में अतुल सुख प्राप्त हो । अतः हे विभो ! आप कृपा कर इसे सत्य का परिचय कराइये ।।
[६४५-६५०] कोविदसूरि ने स्वीकृति दी, फिर मुझे ध्यानपूर्वक सुनने को कहा। अकलंक के प्राग्रह से मैं सूरि महाराज के निकट बैठा और सूरि महाराज ने अपनी कथा हमें सुनाई।
१२. श्रुति, कोविद और बालिश
[अकलंक मुनि के कहने से मन में आचार्य भगवान् की कथा के प्रति निरादर होते हुए भी अपने चित्त को अन्यत्र लगाकर मैं कथा सुनने तो बैठ गया, पर मुझे उनकी कथा में कोई रुचि नहीं थी।]
प्राचार्य महाराज ने कथा प्रारम्भ की :--
एक क्षमातल नामक नगर है जिसके राजा का नाम स्वमलनिचय और रानी का नाम तदनुभूति है । इनके कोविद और बालिश नामक दो पुत्र हैं। कोविद का पूर्वजन्म में सदागम से परिचय हुआ था। जब कोविद ने इस जन्म में फिर से सदागम को देखा तब ऊहापोह (विचार) करते-करते उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया, जिससे पूर्वकाल का परिचय स्मृति में आ गया और सदागम को देखकर उसके चित्त में आनन्द की वृद्धि हुई। फिर यह समझ कर कि यही मेरा हितकारी गुरु है उसने सदागम को अपना गुरु स्वीकार किया। कोविद ने सदागम का स्वरूप बालिश को भी समझाया, किन्तु उसके हृदय में पाप होने से उस दुर्बुद्धि ने उसे स्वीकार नहीं किया। कोविद का श्रुति के साथ लग्न
__ इधर कर्मपरिणाम महाराज ने अपनी कन्या श्रति को कोविद और बालिश के पास भेजा । यह कन्या स्वयंवर द्वारा विवाह करने की इच्छुक थी। कन्या के साथ एक संग नामक दासपुत्र था। यह दासपुत्र सम्बन्ध कराने में अतीव निपुरण और चालाक था तथा सर्वदा श्रुति के आगे-आगे चलने वाला था। संग को श्रुति से पहले ही
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