Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
जब जितनी योग्यता होती है तब उतने ही गुण उसे प्राप्त होते हैं। योग्यता बिना गुण-प्राप्ति या उसकी वृद्धि नहीं हो सकती। अतः प्राचार्य के उपदेश से मुझे मात्र सूक्ष्म ज्ञानरहित सच्ची श्रद्धा हुई, क्योंकि उस समय मुझ में इतनी ही योग्यता/पात्रता थी।
[९२६-६३७] गृहिधर्म का आगमन
कर्मग्रन्थी का भेद करते हुए मैंने कर्मस्थिति को क्षीण किया था। उस समय उसमें से भी दो से नौ पल्योपम की स्थिति को मैंने और कम कर दिया, जिससे चारित्रधर्मराज का पुत्र गृहिधर्म मेरे पास आया। मैंने उसे सामान्य तौर से पहचाना, विस्तृत परिचय नहीं कर सका। मैंने कतिचिद् सामान्य व्रत नियम भी ग्रहण किये और तदनुसार उनका पालन भी किया । मैंने जितना पालन किया वह श्रद्धा से विशुद्ध बुद्धिपूर्वक किया, परिणामस्वरूप भवितव्यता मुझे दूसरी गोली देकर कल्पवासी विबुधालय में ले आई।
[६३८-६४०] सौधर्म देवलोक : पूर्वभव-स्मरण
सौधर्म के नाम से प्रसिद्ध प्रथम देवलोक में देदीप्यमान देवता का रूप धारण करते हुए मैं क्षणभर में सुख-शय्या से जागृत हुआ। देवता का जन्म किस प्रकार होता है और उस समय उसका शरीर कैसा होता है यह सुनने योग्य है, अतः सुन
एक दिव्य पलंग पर सुन्दर अति कोमल स्पर्श वाला बिछौना था। उस पर बहुत ही मुलायम चित्तानन्ददायक आच्छादन (चादर) बिछा था। आस-पास अति सुगन्धित फूलों और धूप की सुगन्ध फैल रही थी। आँखों को प्रिय लगने वाला दिव्य वस्त्र का अति सुन्दर चन्दोवा पलंग के ऊपर बंधा हुआ था।
वहाँ मेरे सन्मुख दोनों हाथ पसार कर खड़े हुए देवताओं के प्रानन्द स्वर से मुझे अत्यधिक आश्चर्य हुमा । उस समय मेरे शरीर पर मुकुट, कड़े, बाजूबन्द, हार
और कुण्डल आदि आभूषण सुशोभित हो रहे थे । शरीर पर सुगन्धित लेप, मुख में पान और कण्ठ में सदैव ताजा रहने वाला पुष्पहार था। ऐसे सुन्दर संयोगों में मैं शय्या से उठकर बैठा हुअा । उस समय चारों दिशायें प्रकाशमान हो रही थीं।
उस समय शय्या के पास ही देवांगनाए खड़ी थीं, जिनके सुन्दर नेत्र निनिमेष होते हुए भी अति चपल थे, जो अत्यन्त सुन्दर थीं और प्रेम भरी आँखों से 'जय जय नन्दा, जय जय भद्दा' बोल रही थीं । वे कह रही थी 'हे नन्द ! हे भद्र ! आपकी जय हो । आप देव हैं । आप हमारे स्वामी हैं । हम आपकी दासियां हैं। इस प्रकार अद्भुत रूप सौन्दर्य वाली वे देवियां मधुर एवं कर्णप्रिय शब्दों से बोल रही थीं।
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