Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ८ : नो कन्यानों से विवाह : उत्थान
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में प्रवेश करने वाले हैं, अतः इनका पूर्ण पादर-सत्कार करना चाहिये। मैंने मन्त्री के कथन को स्वीकार किया।
तत्पश्चात् मंत्री ने विद्य त (तेजस) पद्म और स्फटिक (शुक्ल) वर्ण की सुन्दर प्राकृति वाली सुख-स्वरूपी तीन लेश्या गोत्रीय स्त्रियों को बताया। इनके नाम पीत, पद्म और शुक्ल लेश्या बताये। इनका परिचय कराते हुए मन्त्री ने कहा
देव ! ये तीनों स्त्रियाँ धर्म की सेविकायें हैं और शुक्ल लेश्या विशेष रूप से शुक्लध्यान की परिपोषक है । ये तीनों अत्यन्त उपयोगी, योग्य और लाभदायक हैं, [३६३]* अतः इनके साथ बहुत अच्छा व्यवहार करें। इनके बिना तुम्हारे उपकारी धर्म और शुक्ल दोनों पुरुष तुम्हारे पास नहीं रह पायेंगे। तुम्हें जिस राज्य की प्राप्ति करनी है उसमें मुख्य सहायक ये दोनों पुरुष हैं, अतः तुम्हें इन तीनों स्त्रियों का अच्छी तरह पोषण करना चाहिये । मैंने कहा--बहुत अच्छा, मैं ऐसा ही करूंगा। वैवाहिक तैयारियाँ
अब मैं चित्तवृत्ति में प्रवेश करने लगा। उपर्युक्त तीनों लेश्याओं के निर्देशानुसार प्रवृत्ति करने लगा। विद्या के साथ विलास करने लगा । सद्बोध के साथ बार-बार मन्त्रणा करने लगा और सदागम, सम्यग्दर्शन तथा गृहिधर्म का सन्मान करने लगा। इस प्रकार करते हुए मुझे प्राचार्यश्री के विहार के बाद लगभग पाँच माह बीत गये। अन्त में मेरे सद्गुणों से कर्मपरिणाम राजा मेरे अनुकूल हुए। फिर वे स्वयं चित्तसौन्दर्य आदि नगरों में गये और शुभपरिणाम आदि राजाओं को मेरे अनुकूल कर उन्हें अपनी कन्याओं का लग्न मेरे साथ करने को प्रेरित किया । अनन्तर सेनापति पुण्योदय को आगे कर कालपरिणति आदि अपने परिवार को लेकर मेरे पास आये । कन्याओं से विवाह के लिये उन्होंने मुझे मेरी चित्तवृत्ति में प्रवेश करवाया। तदनन्तर कर्मपरिणाम महाराज ने शुभपरिणाम आदि चारों राजाओं को सन्देश भेजा कि वे सभी सात्विकमानसपुर में आये हुए विवेक पर्वत के शिखर पर स्थित जैनपुर में आ जायें। चारों राजा अपने परिवार सहित वहाँ प्रा पहुँचे। सब का आदर-सत्कार किया गया और सब ने मिलकर लग्न का दिन निश्चित किया। महामोह की सेना में घबराहट
___ इधर महामोह की सेना एकत्र हुई और सब मिलकर इस विषय पर विचार करने लगे। विषयाभिलाष मन्त्री बोला-देव ! यदि संसारी जीव क्षान्ति आदि नौ कन्याओं से विवाह कर लेगा तो हम सब की तो मौत ही है, अतः अब हमें इसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये । विषाद का त्याग कर साहसपूर्वक प्रयत्न करना चाहिए। कहा भी है कि :
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