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प्रस्ताव ८ : ऊंट वैद्य कथा
रूप में प्रतिपादित किया है। भगवन् ! इन सब का अन्तिम सार तो ध्यान-योग ही हुअा । तब क्या ये सभी धर्मगुरु भी मोक्ष के साधक हैं ? यदि सब का साध्य ध्यान के माध्यम से मोक्ष ही है तो फिर अलग-अलग योगियों ने ध्यान के भिन्न-भिन्न मार्ग क्यों बतलाये ? मेरे मन में इस सम्बन्ध में प्रबल संशय है । हे नाथ ! मेरे इस संदेहवृक्ष को आप अपने वचन रूपी हाथी की शक्ति से मूल सहित उखाड़ फेंकिये, मेरे संशय का संतोषजनक स्पष्टीकरण करिये। [७५८-७६०]
समन्तभद्र-आर्य ! तेरा प्रश्न प्रसंगोचित है । तुम अभी जैनागम के सामान्य गीतार्थ बने हो, पर इसके गूढ रहस्य को बराबर नहीं समझ सके हो, इसीलिये ऐसा प्रश्न कर रहे हो । बात ऐसी है कि सभी धर्मगुरु कूटवैद्य (ऊँट वैद्य) जैसे हैं । जैनधर्मज्ञ सद्वैद्य के शास्त्र रुपी महावृक्ष की एक-एक शाखा पकड़ने वाले हैं। इसीलिये तेरे मन में प्रश्न उठा है । इसका स्पष्टीकरण कथा द्वारा करता हूँ, सुनो।
[७६१-७६२]
१८. ऊंट वैद्य कथा
एक नगर के प्रायः सभी निवासी अनेक प्रकार की महा व्याधियों से ग्रस्त थे । इस नगर में एक महावैद्य (सच्चा वैद्य)था जो दिव्यज्ञानी,* समस्त संहिताओं का निर्माता, सर्व रोगों का नाश करने वाला और लोगों का उपकार करने की विशुद्ध भावना वाला था। पर, वहाँ के लोग पुण्यहीन थे इसलिये इस सच्चे वैद्य की बात नहीं मानते थे और उसके कथनानुसार कार्य नहीं करते थे। कुछ ही भाग्यशाली प्राणी इस वैद्य की बात मानते थे। यह वैद्य निरन्तर अपने शिष्यों को व्याख्यान देता था। वह व्याख्यान जो लोग सुनते थे उनमें से कुछ धूर्त लोग भी कतिपय बातें सीख लेते थे । इस प्रकार दूसरों से सुनकर, थोड़ा बहुत सीखकर “सौंठ की गांठ से"
* पृष्ठ ७५६
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