Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
View full book text
________________
प्रस्ताव ८ : उपसंहार
४३५
की आज्ञानुसार और युक्तियुक्त ही है ; * क्योंकि अागम में मतिज्ञान की वासना असंख्य काल तक रहती है, ऐसा कहा गया है। शास्त्र में ऐसा एक भी वचन या उदाहरण नहीं है जिसमें यह बताया गया हो कि मतिज्ञान की वासना असंख्य काल तक नहीं रह सकती। अनेक भवों के बाद भी यह वासना रह सकती है, अतः अनुसुन्दर ने अपने भव-भ्रमण की कथा स्वयं कही इसमें कोई विरोध नहीं है। [१८६-६८७] ग्रन्थ का भावार्थ
प्रारम्भ से अन्त तक इस ग्रन्थ का भावार्थ निम्न है :
इस संसार में ऐसी एक भी दुर्लभ वस्तु नहीं है जो कुशल-कर्म/पुण्य के विपाक के फलस्वरूप नहीं मिल सकती हो । पुण्य के प्रताप से सभी प्रकार के भोग
और विपुल सुख प्राप्त हो सकते हैं, तथापि बुद्धिमान लोग शमसुख (शान्ति के साम्राज्य) को प्राप्त करना ही श्रेयस्कर समझते हैं। [१८८]
मनुष्य चाहे जितने उच्च पद पर पहुँच जाय, उच्चता की पराकाष्ठा प्राप्त करले, पर यदि वह पाप-कर्मों को अपना शत्रु न समझे तो वे प्रबल हो जाते हैं और तब वे प्राणी को इस भयंकर संसार-समुद्र में वेग से धकेल देते हैं। [१८६]
प्राणी ने यदि नरक में जाने योग्य भयंकर अशुभ पाप-कर्म संचित किये हों, तदपि यदि वह सदागम-बोध-परायण होकर क्षणभर भी पुण्य या शुभकर्म करे तो अन्त में वह पाप रहित होकर मोक्ष भी जा सकता है। [६६०]
इस वस्तुस्थिति को समझकर यथाशक्य शीघ्रातिशीघ्र मन के मैल को निकाल कर दूर फेंक दीजिये । मन के मैल को निकाल कर सदागम की सेवा करिये, जिससे सद्मागम के आधार पर आप भी अनुसुन्दर चक्रवर्ती की भांति मोक्ष प्राप्त कर सकें। [९६१]
. एक विशेष बात यह भी है कि अनुसुन्दर चक्रवर्ती कर्ममल के वशीभूत हुआ, जिससे उसे अनन्त भव-भ्रमण करना पड़ा । उसके वृत्तान्त को कथा में इसलिये गूथा गया कि प्राणियों की बुद्धि विकसित हो और उन्हें अपनी वस्तुस्थिति का ज्ञान हो जाय । [९६२]
विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि जैसे अनुसुन्दर चक्रवर्ती को जिस पद्धति से अनेक भव करने पड़े उसी प्रकार प्रत्येक प्राणी को भी करने पड़ें, यह आवश्यक नहीं है । क्योंकि, बहुत से प्राणियों ने एक ही भव में एकबार ही जिनेन्द्रमत को प्राप्त कर उसी भव में मोक्ष प्राप्त किया है। कुछ प्राणियों ने जैनेन्द्र-मत की प्राप्ति करने के बाद तीसरे या चौथे भव में मोक्ष प्राप्त किया है । अनुसुन्दर ने जो-जो अनुष्ठान किये वे अनुष्ठान भिन्न-भिन्न रूप में करके भी अनेक भव्य जीव मोक्ष गये हैं।
* पृष्ठ ७७४ Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org