Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 1215
________________ उपमिति भव-प्रपंच कथा प्राप्त कर लेशी ( लेश्या रहित ) हो जाता । फिर अपने स्वाभाविक स्वरूप में स्थित होकर स्वयं ही परमेश्वर / परमात्मा बन जाता है । ४३४ स्वयं समन्तभद्राचार्य को अनुसुन्दर चक्रवर्ती अर्थात् संसारी जीव का चरित्र प्रत्यक्ष ज्ञात हुआ था और महाभद्रा ने उनके कहने से इसे जाना था । इसी प्रकार सभी संसारी जीवों का चरित्र सर्वज्ञ के आगम को प्रत्यक्ष होता है और सुसाधु जब इसे दूसरों को सुनाते हैं तब प्रज्ञाविशाल ( विशाल बुद्धि वाले ) इसे स्वयं समझ लेते हैं और उसका प्रतिपादन दूसरों के समक्ष करने में भी स्वयं सक्षम हो जाते हैं । यह सम्पूर्ण चरित्र सुललिता ( प्रगृहीतसंकेता) को उद्देश्य कर सुनाया गया था, पुण्डरीक ने तो प्रासंगिक रूप से सुना मात्र था । फिर भी वह लघुकर्मी होने से उसने शीघ्र ही इस अनुसुन्दर चक्रवर्ती का जीवन-चरित सुनकर, समझकर, अवगान कर उसे अपने जीवन में कार्यान्वित कर लिया । इस प्रकार हे भव्यों ! आगम और अनुभव से सिद्ध इस संसारी जीव के चरित्र को श्राप भली-भांति समझें, समझ कर उसे चरित्र / चरण में उतारें, कषायों का त्याग करें, कर्म आने के मार्ग प्रास्रव के द्वार बन्द करदें, इन्द्रिय-समूह पर विजय प्राप्त करें, समग्र मानसिक मलिनता के जाल को ध्वंस करदें, सद्गुणों का पोषण करें, संसार के प्रपंच / विस्तार का त्याग करें और शीघ्र ही शिवालय (मोक्ष) पहुँचे जिससे कि आप भी सुमति ( सन्मति वाले) भव्यपुरुष बन जायें । यदि आप में भव्यपुरुष पुण्डरीक जितनी लघुकमिता न हो तो जैसे सुललिता को बार-बार प्रेरणा दी गई, बार-बार प्रेम पूर्वक समझाया गया, अनेक प्रकार के उपालम्भ दिये गये, पूर्व-भव की स्मृति दिला कर सचेत की गई, तब गुरुकर्मी होने पर भी वह प्रतिबोधित हुई, वैसे ही आप भी जागृत होकर बोध प्राप्त करें । अन्तर केवल इतना है कि यदि आप इस प्रकार बोध प्राप्त करेंगे तो आपकी गणना प्रज्ञाविशालों की श्रेणी में नहीं होगी, किन्तु आप भी प्रगृहीतसंकेता के नाम से पुकारे जायेंगे । यह अवश्य है कि गुरु महाराज को आपको प्रतिबोध देने में कण्ठशोषण अधिक करना पड़ेगा, उन्हें बहुत कठिनाई उठानी पड़ेगी । पर, यह तो निश्चित है कि वे आपको प्रतिबोध देंगे और अन्त में आप अवश्य प्रतिबोध प्राप्त करेंगे । जिस प्रकार सुललिता को सदागम के ऊपर बहुमान हुआ और उस बहुमान के प्रभाव से सुललिता को स्वयं के दुश्चरित पर पश्चात्ताप हुआ, सद्गुणों पर पक्षपात/आकर्षण हुआ, फलस्वरूप उसके सकल कर्ममल का नाश हुआ वैसे ही आपको भी सदागम / सर्वज्ञागम पर तदनुरूप अन्तःकरणपूर्वक बहुमान रखना चाहिये जिसके परिणामस्वरूप आपको भी विशिष्ट सत्तत्त्व - बोध प्राप्त हो । जिस प्रकार यांस कुमार और ब्रह्मदत्त चकवर्ती को जातिस्मरण ज्ञान हुआ, जिससे वे पूर्वभवों के बारे में जान सके, उसी प्रकार संसारी जीव अनुसुन्दर चक्रवर्ती आदि को भी जातिस्मरण ज्ञान हुआ । जाति-स्मरण ज्ञान के फलस्वरूप उसने अपने पूर्वभवों की संसार भ्रमण की सारी आत्मकथा स्वयं कहीं । यह शास्त्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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