Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 1221
________________ ४४० उपमिति-भव-प्रपंच कथा जहाँ टंकशालाओं में अर्थ/धन है, सददेवों के धाम (जिनचैत्यों) में धर्म है और लीलावती ललनात्रों के लोक में काम है । इस प्रकार जहाँ तीनों गुणों (अर्थ, काम और धर्म) का सर्वदा मोदकारी जमघट है । [ १०१६ ] ऐसे निखिल गुणगणों का आधारभूत श्री भिल्लमाल नामक नगर के अग्रिम मण्डप में रहते हुए सिद्धर्षि कवि ने इस कथा की रचना की। [ १०१७ ] प्रथमादर्श लिखिता साध्व्या श्रुतदेवतानुकारिण्या। दुर्गस्वामिगुरूणां शिष्यिकयेयं गुणाभिधया ॥१०१८॥ श्रुतदेवता का अनुकरण करने वाली गुरुवर श्री दुर्गस्वामी की शिष्या गुणा नाम की साध्वी ने इस ग्रन्थ का प्रथमादर्श (प्रथम प्रति) लिखा । [ १०१८ ] संवत्सरशतनवके द्विषष्टिसहिते (६२)ऽतिलंधिते चास्या। ज्येष्ठे सितपञ्चम्यां पुनर्वशी गुरुदिने समाप्तिरभूत् ॥१०१६॥ प्रायः समाप्ति की ओर अग्रसर संवत् ६६२ संवत्सर में ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी गुरुवार पुनर्वसु नक्षत्र में इस रचना की पूर्णाहुति हुई। [ १०१६ ] ग्रन्थाग्रमस्या विज्ञाय, कीर्तयन्ति मनीषिणः। अनुष्टुभां सहस्रारिण, प्रायशः सन्ति षोडश ॥१०२०।। मनीषियों के मतानुसार इस कथा-ग्रन्थ का ग्रन्थाग्र/श्लोक परिमाण अनुष्टुब श्लोक-पद्धति से प्रायशः सोलह हजार है । [ १०२० ] इति ग्रन्थकर्ता प्रशस्ति महर्षि सिर्षि प्रणीत उपमति-भव-प्रपञ्च कथा का हिन्दी अनुवाद पूर्ण हुआ। श्रावणी पूर्णिमा सं० २०३६ जयपुर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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