Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 1192
________________ प्रस्ताव ८ : द्वादशांगी का सार ४११ गुरु महाराज के वचनामृत से सन्तुष्ट होकर शान्तात्मा पुण्डरीक महामुनि ने पुनः हाथ जोड़कर ललाट से छूते हुए गम्भीर स्वर में कहा--भगवन् ! जब मैं बालक था तब मुझे मोक्षमार्ग के प्रति बहुत कुतूहल था, बचपन में उस मार्ग को जानने की जिज्ञासा थी, अत: मैंने कई कुतीर्थिक धर्मगुरुयों से इस विषय में प्रश्न पूछे थे कि, हे भाग्यशाली महात्माओं ! सब विषयों का गूढ़ रहस्य और नि:श्रेयस्कर/ मोक्ष-प्राप्ति का परम तत्त्व क्या है ? जो सब से महत्वपूर्ण सार हो उसे समझाइये। मेरे प्रश्न के उत्तर में भिन्न-भिन्न मान्यता के गुरुत्रों ने मुझे भिन्न-भिन्न उत्तर दिये, जिनका सार संक्षेप में निम्न है :-- [७३१-७३४[ ___ एक ने कहा-हिंसा करो या कुछ भी करो किन्तु मुमुक्षु प्राणी को अपनी बुद्धि पर किसी प्रकार का लेप (आवरण) नहीं चढ़ने देना चाहिये । उनका कथन था कि जैसे आकाश कभी कीचड़ से नहीं भरता वैसे ही सारे संसार को मार कर भी जिसकी बुद्धि पर लेप नहीं चढ़ता, उस पर पाप का लेप भी नहीं चढ़ता। दूसरे ने कहा—जो प्राणी समस्त पापों का आचरण करके भी यदि एक बार भी महेश्वर का स्मरण करता है तो वह क्षणमात्र में समस्त पापों से मुक्त हो जाता है । प्राणियों को छिन्न-भिन्न कर या सैंकड़ों पाप करने पर भी जो विरुपाक्षदेव शिव का स्मरण करता है वह प्राणी पाप से मुक्त हो जाता है। तीसरे ने कहा-पापों की शुद्धि के लिए विष्णु भगवान् का ध्यान करना चाहिये । विष्णु का ध्यान समस्त प्रकार के पापों का प्रक्षालन करने वाला है। उनका कथन था कि, स्वयं अपवित्र हो या पवित्र या अन्य कैसी भी अवस्था में हो पर जो पुण्डरीकाक्ष विष्णु भगवान का स्मरण करता है वह बाहर-भीतर से पवित्र हो जाता है। कुछ लोगों ने पापाशन मंत्र को पाप-विनाशक बताया। कुछ ने वायु जाप को मोक्ष का साधन बताया। उनका कथन था कि हृदयस्थित पुण्डरीक कमल ध्यान से खिलता है । वह विकसित दल सुन्दर और मन-भ्रमर को सुख देने वाला होता है। इस ध्यान-मार्ग पर जाकर मन-भ्रमर परमपद में स्थापित हो जाता है । फिर मन में नाद (ध्वनि) लक्षित/ गुजित होती है, वही परम तत्त्व है। कुछ पूरक, कुम्भक और रेचक वायु द्वारा हृदय-कमल को विकसित करने के साधन को परम तत्त्व कहते हैं। अन्य कहते हैं कि हृदय में जो मोगरे के फूल, चन्द्र या स्फटिक जैसा श्वेत बिन्दु है, जो ऊपर-नीचे या अगल-बगल होता रहता है वही ज्ञान का कारण है ।* • पृष्ठ ७५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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