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प्रस्ताव ८ : ऊंट वैद्य कथा
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संक्षेप में कहें तो सच्चे वैद्य की वैद्यशाला ही रोग पर अंकूश रखने वाली थी. और उसकी संहिता में कही गई बातों का अनुसरण करने वाली वैद्यशालायें ही व्याधि को कम करने वाली थीं। [७७२]
इस अन्तर का कारण यह था कि सदवैद्य भलीभांति जानता था कि सभी व्याधियां वात, पित्त और कफ से होती हैं। इन तीनों दोषों और उनके निवारण के सम्यक उपाय भी वह जानता था । कूट वैद्य यह बात नहीं जानते थे। तत्त्व-विरोधी होने के कारण वे इन्हें नहीं समझ सकते थे । यदि कभी किसी भाग्यशाली रोगी को उनसे लाभ हो जाता तो वह 'घुरणाक्षर न्याय' (दैवयोग) से ही होता था । वस्तुतः रोगों की चिकित्सा करने वाला तो एक वह ही सवैद्य था। [७७३-७७५] कथा का उपनय : सवैद्य
पुण्डरीक ! तेरे समक्ष जो वैद्य की कथा संक्षेप में कही है वह तेरे संदेह को दूर करने में सक्षम है । अतः इस कथा का उपनय समझाता हूँ, सुनो---
उपर्युक्त कथा में जिसे नगर कहा गया है, उसे संसार समझो । संसारी जीव सब प्रकार के रोगों से ग्रस्त हैं ।
उस नगर में एक सवैद्य था उसे परमात्मा/ सर्वज्ञ सवैद्य समझो। सर्वज्ञ केवलज्ञानी होते हैं, आगम रूपी शुद्ध सिद्धान्त उनकी संहिता है। वे सब लोगों पर उपकार करने वाले और कर्मरूपी भयंकर रोगों को मिटाने वाले हैं । किन्तु, अधिकांश संसारी जीव गुरु-कर्मी होते हैं, अत: वे सर्वज्ञ को परमेश्वर के रूप में स्वीकार नहीं करते । कुछ लघुकर्मी भाग्यशाली भव्यप्राणी सर्वज्ञ परमेश्वर को सवैद्य के रूप में स्वीकार करते हैं । जगद्गुरु सर्वज्ञ जब देवताओं और मनुष्यों की सभा में अपने शिष्यों को प्रभावोत्पादक देशना द्वारा मोक्षमार्ग बतलाते हैं उस समय वहाँ कुछ अन्य मनुष्य और देव भी उपस्थित रहते हैं, उनमें से कुछ दूषित विचार वाले भी सर्वज्ञ की देशना सुनते हैं। [७७६-७८२] वैद्यशाला
सर्वज्ञ की देशना अनेक नयों की अपेक्षा से गम्भीरार्थ वाली होती है । इस देशना को सुनकर कुछ मन्दबुद्धि जीव जिनकी चेतना मिथ्यात्व से आक्रान्त होती है, वे विपरीत कल्पनायें करते हैं और जिन-सवैद्य की सभा से निकलकर, सुने हुए उपदेश का कुछ अंश पकड़ कर अपने शास्त्र बना लेते हैं। ऐसे मन्द-बुद्धि प्राणियों को कूट वैद्य (ऊंट वैद्य) समझना चाहिये। [७८३-७८४]
इनमें से सांख्य आदि कुछ आस्तिक लोगों ने अपने ग्रन्थों में कुछ सुन्दर एवं उपयोगी बातें जिनवाणी, जैनागम के अनुसार लिखीं और कुछ अपनी कल्पना के अनुसार लिखीं। किन्तु, अपने पाण्डित्य का अभिमान तो पूर्ण ग्रन्थ पर रखा । अतएव यहाँ इन्हें ऊंट वैद्य समझो । इनके शास्त्र भी सर्वज्ञ के कतिपय सद्वचनों से भूषित होने से संसार में प्रसिद्ध हुए। [७८५-७८७]
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