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प्रस्ताव : उपसहार
चरित्र सुना था उन सब की अन्तरंग प्रगति हुई । जिन्होंने दूर रहकर, विस्मित होकर मात्र कुतूहल से उपदेश सुना था उनका भी कल्याण हुआ । जिनजिन भव्य प्राणियों ने यह कथा सुनी उनका मन भी निश्चिततया भव प्रपञ्च से विरक्त हुआ, थोड़े बहुत अंश में उन्हें भी वैराग्य प्राप्त हुआ । इसके परिणामस्वरूप कुछ श्रोताओं ने दीक्षा ली, कुछ ने गृहस्थ धर्म स्वीकार किया, कुछ ने सम्यक्त्व प्राप्त किया और कुछ को संवेग प्राप्त हुआ । [ ९७७-६८१]
२१. उपसंहार
हे भव्यपुरुषों ! मैंने आपको महान् पुरुषों का यह वृत्तान्त सुनाया जिसे आपने भावार्थ सहित सुना / समझा । यदि आप इसे सम्यक् रीति से समझ गये हैं, तो आपको भी इसके अनुसार अनुष्ठान / प्राचरण करना चाहिये, जिससे कि इस प्रसंग में किया गया मेरा परिश्रम भी सफल हो । एक विशेष बात, मैंने इस ग्रन्थ में जो वृत्तान्त प्रस्तुत किया है, वह प्रायः सभी संसारी जीवों पर समान रूप से लागू होता है, तब स्वयं के चरित्र से मिलते चरित्र को सुनकर भी यदि आप उसे जीवन में उतारने में विलम्ब करें, उसकी उपेक्षा करें तो वह किसी प्रकार आपके लिए योग्य नहीं कहा जा सकता । [ ६८२ - ६८५ ]
उपनयों का उपसंहार
कुमार पुण्डरीक इस जम्बूद्वीप स्थित पूर्व महाविदेह क्षेत्रवती सुकच्छविजय के शंखपुर नगर में श्रीगर्भ राजा और कमलिनी रानी का पुत्र हुआ । समन्तभद्राचार्य ने जो शंखपुर के चित्तरम उद्यान में स्थित मनोनन्दन चैत्य में विराज रहे थे तब बालक की पात्रता को देखकर उन्होंने अनेक भव्य पुरुषों के समक्ष कहा था कि 'मनुजगति नगर में अनुकूल बने कर्मपरिणाम महाराजा और कालपरिणति महारानी के सुमति या भव्यपुरुष नामक बालक का जन्म हुआ है ।' साथ में उन्होंने यह भी कहा था कि 'यह बालक बड़ा होकर समस्त गुणों का आधार सर्वगुण सम्पन्न होगा ।' यह बात तो आपके ध्यान में ही होगी ।
उपर्युक्त सभी वृत्तान्त लघुकर्मी भव्य पुरुषों पर समान रूप से घटित होता है । मनुष्य चाहे किसी क्षेत्र, नगर या स्थान में जन्म ले, पर वे सब मनुजगति नगरी में ही रहते हैं । बाह्यदृष्टि से उनके माता-पिता के भिन्न-भिन्न नाम भले ही हों, परन्तु वस्तुतः तो वे सभी कर्मपरिणाम राजा और कालपरिणति रानी के ही पुत्र हैं । फिर उनके कुछ भी नाम क्यों न रखे गये हों, पर उनका सामान्य नाम भव्यपुरुष
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