Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 1186
________________ प्रस्ताव ८ : सात दीक्षायें ४०५ दीक्षायें अनुसुन्दर आदि की दीक्षा के अवसर पर मनोनन्दन उद्यान क्षणमात्र में अनेक भव्य प्राणियों और मुनि महात्माओं से खचाखच भर गया । महान् आनन्दोत्सव होने लगा। आकाश से देवता भी नीचे उतरने लगे जिससे चारों ओर प्रकाश फैल गया। शहनाइयों और वाद्यों के स्वर और नाद से भुवन का मध्यवर्ती भाग संकीर्ण हो गया, अर्थात् उद्यान और मन्दिर का कोना-कोना गूज उठा । अनेक प्रकार की वृहत् पूजात्रों और सत्कार से उद्यान सुशोभित होने लगा। इस प्रसंग पर अनेक भव्य प्राणी विविध प्रकार के दान दे रहे थे, परस्पर सन्मान कर रहे थे, सद्गायन गा रहे थे और करणोचित वैधानिक कार्यों का सम्पादन कर रहे थे। [६५८-६६१] उसी समय मगधसेन राजा ने रत्नपुर का और श्रीगर्भ राजा ने शंखपुर का राज्य भी अनुसुन्दर के पुत्र पुरन्दर को सौंप दिया। राज्यकार्य चलाने की सारी व्यवस्था कर, तुरन्त अन्य अवसरोचित सभी कार्य पूर्ण किये। ___ पश्चात् समन्तभद्राचार्य ने अनुसुन्दर, पुण्डरीक, उसके माता-पिता, श्रीगर्भ और कमलिनी, सुललिता, उसके माता-पिता सुमंगला और मगधसेन इन सातों व्यक्तियों को विधिपूर्वक भागवती दीक्षा प्रदान की। फिर उन्होंने इन सब को संयम में स्थिर करने के लिये अमृतोपम मधुर वाणी में संवेग-वर्धक सद्धर्मदेशना दी। इसे सुनकर सभी लोग आनन्दित हुए। सब के मन में शुभ भावों की वृद्धि हुई । तत्पश्चात् सभी अपने-अपने स्थान पर और देवता स्वर्ग में चले गये । [६६२-६६५] उपदेश समाप्त होने पर महाभद्रा आदि साध्वियाँ भी प्राचार्यप्रवर की आज्ञा लेकर अपने उपाश्रय में चली गईं। यह सब महोत्सव देखकर सूर्य ने सोचा कि वह तो आचार्यश्री के उपदेशानुसार करने में असमर्थ है, अत: लज्जा के मारे वह अन्य द्वीप में जाकर छिप गया (सूर्यास्त हो गया)। सभी साधु अपनी आवश्यक क्रियायें (सामायिक, प्रतिक्रमण, वन्दन आदि) करने लगे। फिर स्वाध्याय और ध्यान में मग्न हो गये । इस प्रकार रात्रि का प्रथम प्रहर व्यतीत हो गया। [६६६-६६८] अनुसुन्दर का स्वर्गगमन उस समय अनुसुन्दर राजर्षि को मन में अत्यन्त संतोष हुआ, अत्यन्त शान्ति हुई, कर्तव्यपूर्णता के मार्ग पर आने की प्रशस्त स्थिति का भान हुआ और अपना अहोभाग्य मानकर एकान्त में ध्यान-मग्न हो गये। उनकी लेश्यायें अधिक विशुद्ध होती गईं और उपशम श्रेणी पर चढ़कर वे उपशान्त मोह गुणस्थान पर आरूढ़ हो गये । प्राचार्यप्रवर द्वारा जब अन्य मुनियों को ज्ञात हुआ कि अनुसुन्दर का मरण काल निकट आ गया है, तब सभी उनके पास आ गये और उन्हें समाधि उत्पन्न करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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