Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 1188
________________ प्रस्ताव ८ : सात दीक्षायें ४०७ रूपी पाथेय/संबल को अपने साथ बाँध लिया है, वह तो मृत्यु की प्रतीक्षा करता है और मृत्यु के निकट पाने पर तनिक भी नहीं डरता। उसे तो मृत्यु महोत्सव जैसी लगती है, उसके लिये तो मरण महान प्रानन्द का प्रसंग है। ___ जिसने ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप रूपी चार स्तम्भों से सुदृढ़ बनी और पाप को नाश करने वाली आराधना की हो उसे मृत्यु से क्या भय ? उसके लिये मृत्यु क्या है ? जिन मुनीश्वरों ने पाप-समूह को धोकर, आराधना कर, पण्डित मरण को प्राप्त किया है, वे तो पारमार्थिक अानन्द के जनक हैं, उत्पादक हैं और आनन्द स्वरूप हैं। ___ अतएव हे बाले ! अनुसुन्दर राजर्षि ने तो अनार्य कार्य से निवृत्त होकर अपना कार्य सिद्ध कर लिया है, कृतकृत्य हो गया है, अत: उनकी मृत्यु पर कैसा शोक ? ऐसा शोक कैसे उचित कहा जा सकता है ? [६७२-६८२] अनुसुन्दर का भविष्य पुन : सुन–अनुसून्दर राजर्षि तो यहाँ से सर्वार्थसिद्धि विमान में गये हैं। जब उनकी तेंतीस सागरोपम की आयुष्य पूरी होगी तब वे वहाँ से स्थिति क्षय होने पर, च्युत होकर पुष्करवर द्वीप के भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी के गंगाधर राजा और पद्मिनी रानी के पुत्र अमृतसार के नाम से जन्म लेंगे । वहाँ वे देव जैसी समृद्धि को प्राप्त करेंगे और मनुष्य रूप में देवताओं के समान दिव्यसुखों में लालित-पालित होंगे । यौवन प्राप्त होने पर वे समस्त कलाओं में कुशलता प्राप्त करेंगे । फिर विपुलाशय प्राचार्य से बोध प्राप्त कर, माता-पिता को समझा कर पारमेश्वरी दीक्षा ग्रहण करेंगे । इनकी आत्मा अत्यधिक विशुद्ध होती जायेगी वे और साधु जीवन में बहुत समय तक महान तप करेंगे । अन्त में अपने समस्त कर्मजाल को काटकर समाधिपूर्वक प्रागे बढ़ेगे और संसार के प्रपंच को छोड़कर शिवालय/मुक्ति को प्राप्त करेंगे। [६८३-६८७] __ हे आर्य ! इस प्रकार अनुसुन्दर राजर्षि तो भव्य प्राणियों के लिये अत्यन्त प्रमोद के कारण हैं । ऐसे महापुरुष के मृत्यु-प्रसंग पर किसी प्रकार का शोक-सन्ताप करना ही नहीं चाहिये । [६८८] प्राचार्य से अनुसुन्दर राजर्षि का भविष्य सुनकर मुनि पुण्डरीक ने आचार्य को प्रणाम कर पूछा-भगवन् ! राजर्षि अनुसुन्दर का भविष्य तो मैंने आपसे सुना,* किन्तु उनकी चित्तवृत्ति में सर्वदा साथ रहने वाले जो अच्छे-बुरे लोग थे उनका क्या होगा ? वह भी बताने की कृपा करें। [६८६-६६०] अन्तरँग बल का प्राविर्भाव प्राचार्य-पूण्डरीक ! सर्वार्थसिद्धि विमान से जब अनुसुन्दर का जीव अमृतसार के रूप में जन्म लेगा और सर्व संग का त्याग कर भाव-दीक्षा ग्रहण करेगा तब * पृष्ठ ७५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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