Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

Previous | Next

Page 1183
________________ ४०२ उपमिति-भव-प्रपंच कथा बांधा था, वह अब क्षीण हो चुका है। अब भगवान् सदागम की भक्ति करो, उनकी शरण में जाओ । प्राणियों के तत्त्वज्ञान का मूल सदागम की आराधना ही है। जैसे-जैसे सदागम की आराधना अधिक होगी वैसे-वैसे तत्त्वज्ञान में अधिकाधिक वृद्धि होगी। अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने के लिये भगवान् सदागम सूर्य के समान हैं। तुम इनके चरण-कमलों में प्रा पहुँची हो अतः तुम सचमुच भाग्यशालिनी हो । ___अनुसुन्दर के वचन सुनकर, जैसे पवन लगने से अग्नि की ज्वाला भभक उठती है वैसे ही सुललिता के हृदय में तीव्र संवेग रूपी अग्नि ज्वाला अधिक प्रज्वलित हुई । 'भगवान् समन्तभद्राचार्य स्वयं ही सदागम हैं' यह जानकर वह केवली भगवान् के चरणों में झुकी और अत्यन्त श्रद्धापूर्वक बोली-- हे जगत् के नाथ ! महात्मा सदागम ! अज्ञान रूपी कीचड़ में फसी हुई मुझे बाहर निकालने में आप ही समर्थ हैं। हे महाभाग ! मुझ निर्भागिनी को शरण देने वाले आप ही हैं । आप ही मेरे स्वामी हैं, मेरे पिता हैं, मेरे सर्वस्व हैं । हे नाथ! इस सेविका को अब कर्म-मल से रहित कर विशुद्ध कीजिये। [६४३-६४४] सुललिता को जाति-स्मरण ज्ञान सदागम के सन्मान का अतिशय प्रभाव होने से, संवेग अधिक गहरा होने से, हदय सरल होने से, भगवान् का महा कल्याणकारी सामीप्य होने से और उसका मोक्ष निकट होने से उसके कर्म का विशाल जाल पश्चात्ताप के प्रवाह में बह गया। भगवान् के चरणों को अपने अश्रुओं से सिंचित करते हुए ही उसे जाति-स्मरण ज्ञान हो गया। मदनमञ्जरी आदि के भवों में जो कुछ घटित हुआ था और जिसका वर्णन अनुसुन्दर ने अभी-अभी किया था वह सब उसे चलचित्र की भांति प्रत्यक्ष दिखाई देने लगा । उसके चित्त में अधिक प्रमोद जागृत हुआ और वह उठकर अनुसुन्दर के चरणों में गिर पड़ी। अनुसुन्दर-सुललिता ! यह क्या ? सुललिता-ग्रार्य ! भगवत् कृपा से जो होता है वह मुझे भी अभी-अभी प्राप्त हुया है। भगवान् की कृपा से अभी-अभी मुझे भी जाति-स्मरण ज्ञान हो गया है जिससे आपके कथन पर मुझे निर्णय एवं विश्वास हुआ है । परिणाम स्वरूप अब मैं भी संसार-बंदीगृह से छूटना चाहती हूँ, विरक्त हो गई हूँ । इस भाग्यहीन बालिका पर आपने और भगवान् सदागम ने आज बहुत उपकार किया है । अनुसुन्दर-बालिके ! यह नि:संदेह बात है कि भगवान् सदागम अपने भक्त पर अवश्य उपकार करते हैं । तुझे ज्ञात ही है कि भाव-चोरी करते हुए मैं पकड़ा गया था और नरक की ओर जा रहा था, उससे मुझे अभी-अभी भगवान् ने ही छुड़ाया है । पापी प्राणी भी सदागम को प्राप्त कर उनकी भक्ति करे तो वे अवश्य ही पाप से मुक्त होते हैं, यह संशय-रहित है । हे भद्रे ! तुझे अति कठिनाई से बोध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 1181 1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199 1200 1201 1202 1203 1204 1205 1206 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214 1215 1216 1217 1218 1219 1220 1221 1222