Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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८. विद्या से लग्न : अन्तरंग युद्ध
विद्या से लग्न
मैं केवली भगवान् निर्मलाचार्य के आदेशानुसार उच्च सद्गुणों का अभ्यास और भगवत् पर्युपासना करता हुआ अपना समय व्यतीत करने लगा । अन्यदा उच्च भावनाओं का चिन्तन करते-करते एक समय मुझे नींद आ गई। नींद से आँख खलने पर भी वही भावना मन में बसी हुई थी जिसका विचार करते-करते नींद लग गई थी, अत: मेरी भावना प्रबलता से बढ़ती गई और वह गाढ़तर होती गई । जब थोड़ी रात बाकी रह गई तो मुझे अत्यन्त प्रमोद हुआ । मैं चकित होकर इधर-उधर देख ही रहा था कि इतने में सद्बोध मन्त्री विद्याकुमारी को साथ लेकर मेरे समीप मा पहुँचे । मैं विस्मित दृष्टि से उनको देखता रहा।
___ मैंने सदबोध के समीप विद्या को देखा कि वह कुमारी नेत्रों को आनन्ददायिनी, सर्व अवयवों से सुन्दर, आस्तिक्य रूपी सुन्दर मुख वाली, उज्ज्वल एवं निर्मल नेत्रों वाली, तत्त्वागम और संवेगरूपी उरोजों वाली तथा प्रशम रूपी मनोहर नितम्ब वाली थी। वह स्पृहणीय, सर्वगुण-सम्पन्न और चित्त को निर्वाण (शान्ति) प्राप्त कराने वाली थी। मैं एकाग्र दृष्टि से उस कुमारी विद्या को पर्याप्त समय तक* देखता रहा।
उसी रात्रि को उसी समय सद्बोध मन्त्री ने सदागम आदि की साक्षी में पवित्र विद्या का लग्न मुझ से कर दिया । सब को अत्यन्त आनन्द हुआ । इस प्रकार वह रात्रि प्रानन्द से पूर्ण हुई । [३१३-३१६]
प्रातःकाल होते ही मैं उठा और अपने परिवार के साथ प्राचार्यश्री के पास गया और उनको तथा अन्य सभी साधुगणों को वन्दन किया। फिर विनयपूर्वक हाथ जोड़कर निर्मलाचार्य को रात्रि का पूर्ण वृत्तान्त सुनाया और प्राचार्यश्री से पूछा-भगवन् ! रात को मुझे ऐसी कौनसी अत्यन्त सुन्दर और उच्च भावना हुई कि जिससे मेरा चित्त हर्षोल्लास से भर गया ? [३१७-३१६]
___प्राचार्य---राजन् ! सुनो, कर्मपरिणाम राजा अभी तुम्हारे सद्गुणों से तुम पर प्रसन्न हो गया है। अतः वह स्वयं सद्बोध के पास गया और उसे प्रोत्साहित किया कि वह अपनी कन्या विद्या को लेकर तुम्हारे पास जावे और विद्या का लग्न तुम से करदे । तब मन्त्री ने चारित्रधर्मराज प्रादि से परामर्श किया और विद्या को लेकर तुम्हारे पास पाने के लिये प्रस्थान कर दिया [३२०-३२२]
*पृष्ठ ७२०
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