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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
श्वासोच्छवास तेज हो गया और वह हृदयहारी मधुरलता की तरह कांपने लगी। मुझे वह ललित ललना अपने स्निग्ध कपोल और चञ्चल नेत्रों से उस समय वर्णनातीत अत्यन्त प्रीति रस में डूबती हुई नजर आई । [७८]
उस समय कामलता ने मौन तोड़ा-क्यों पुत्रि ! अब तो तुझे लवलिका की बात पर विश्वास हुआ ? प्रश्न सुनकर स्मित हास्य से मेरे हृदय को रंजित करती हुई और हास्य सुधा से अपने कपोलों को उज्ज्वल (रक्ताभ) करती हुई मदनमंजरी अधोमुखी होकर नीचे देखने लगी । इस दृश्य से सभी हर्षित हुए।
कनकोदर आगमन
उसी समय महाराज कनकोदर वहाँ आ पहुँचे। चारों तरफ जगमगाते रत्नों की देदीप्यमान प्रभा से आकाशमार्ग उद्योतित हो गया। राजा के साथ वाले विद्याधर मानो महान् ऋद्धिमान देव हों ऐसा प्रतीत होने लगा। उनके मध्य में महाराज कनकोदर दूर से इन्द्र की भाँति आकाश में सुशोभित होने लगे। उन्होंने अपने विमान में अनेक रत्न भर रखे थे जिनकी शोभा अवर्णनीय थी। प्राकाश से सप्रमोदपुर नगर को देखकर वे सभी धीरे-धीरे आह्लाद-मन्दिर उद्यान में उतरने लगे और हम सब अत्यन्त विस्मयपूर्वक उन्हें नीचे उतरते हुए देखते रहे।
[७६-८१] कनकोदर राजा के नीचे उतरते ही हम सब खड़े हो गये और मस्तक झुकाकर उन्हें प्रणाम किया। सभी अपने-अपने योग्य स्थान पर बैठे । महाराजा कनकोदर ने प्रेम पूर्ण दृष्टि से कुछ समय मेरी तरफ देखा । फिर 'यह वही होना चाहिये' ऐसा मन में निश्चय होने से प्रसन्नचित्त होकर उन्होंने महारानी कामलता की ओर देखा । चतुर लोग आस-पास की परिस्थितियों से अनुमान द्वारा सब कुछ समझ जाते हैं। चतुर कामलता भी राजा के आन्तरिक भाव को समझ गई और उसने संक्षेप में राजा को सब कुछ बता दिया ।
अपना अभिप्राय प्रकट करते हुए राजा बोले-देवि ! अभी तक हम अपनी पुत्री की अभिरुचि को अति दुर्लभ कहा करते थे। हमें यह भी संदेह था कि यह कभी किसी पुरुष को स्वीकार भी करेगी या कुवारी ही रहेगी, पर इसने तो ऐसे पुरुषरत्न को पसंद किया है कि इस पर लगे दुष्कर रुचि के आरोप को झुठला दिया है । सच ही है, इन्द्राणी इन्द्र के अतिरिक्त अन्य को कैसे स्वीकार कर सकती है ? राजा के अभिप्राय का कामलता ने समर्थन किया और कहा कि, हाँ ऐसा ही है, इसमें क्या संदेह है ? मदनमंजरी का पारिणग्रहण
___ यह चर्चा चल रही थी कि महाराजा के पास अतिवेग से उनका गुप्तचर चटुल आया और उनके कान में कुछ गुप्त संदेश दिया। दूत को विसर्जित कर राजा ने कामलता से कहा---'ऐसे आवश्यक कार्य में देरी उचित नहीं है' यह कहकर राजा
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