________________
प्रस्ताव ८ : कन्दमुनि : राज्य एवं गृहिधर्म-प्राप्ति
सुरत-सुख का अनुभव करने के पश्चात् हम निद्राधीन हुए। प्रातः मदनमंजरी के साथ उठा और उठकर उसी के साथ माता-पिता के पास जाकर उन्हें प्रणाम किया और फिर मैं अपने सभी प्रभातकालीन कर्तव्यों में लग गया। [१३२-१३४]
40
४. कन्दमुनि : राज्य एवं गृहिधर्म-प्राप्ति
कुलन्धर का स्वप्न
____मेरा मित्र कुलन्धर दूसरे दिन प्रातः मेरे पास आया और बताया कि उसने रात में एक बहुत सुन्दर स्वप्न देखा है । स्वप्न में उसने स्पष्टरूप से पाँच व्यक्ति देखे जिसमें से तीन पुरुष और दो स्त्रियाँ थीं। उन्होंने बताया कि गुणधारण अभी जो सुखसागर में डुबकियाँ लगा रहा है, वह सब निःसंदेह हमने ही उसके लिये उपलब्ध कराया है। हे कुलन्धर ! भूतकाल में उसके सम्बन्ध में जो कुछ अच्छा हुआ और भविष्य में जो कुछ होगा, वह सब हमारा ही किया हुआ था और होगा । इस प्रकार सूचित कर वे पाँचों पुरुष तुरन्त अदृश्य हो गये । हे कुमार ! ये पुरुष कौन थे? उन्होंने किस प्रकार की योजना से तुझे सारे सुख उपलब्ध करवाये? यह स्वप्न से ज्ञात नहीं हो सका। [१३५-१४०] स्वप्न-फल-विचार
मैंने कहा-भाई कुलन्धर ! इस स्वप्न का वृत्तान्त पिताजी आदि को बतायें जिससे वे हमें इसके वास्तविक भावार्थ को स्पष्टतः समझा सकें। फिर कुलन्धर राज्यसभा में गया। राज्यसभा में विद्वत्समूह बैठा था। पिताजी और राज्यसभा के समक्ष बुद्धिमान कुलन्धर ने स्वप्न की बात कह सुनाई। पिताजी एवं सभी विद्वानों ने स्वप्न के अर्थ पर अलग-अलग विचार किया, फिर सभी ने एकमत होकर निम्न फलार्थ निश्चित किया । ऐसा लगता है कि अमुक देव गुणधारण के अनुकूल हुए हैं। उन्होंने ही कुमार के लिये कल्याणमाला निर्मित की है, ये सब सुखसाधन उपलब्ध कराये हैं । कुमार की सभी अनुकूलतायें उन्हीं के प्रताप से है । उन्होंने ही प्रसन्न होकर कुमार के मित्र को स्वप्न में आकर यह सब बताया है कि यह सब कल्याण-परम्परा हमारे द्वारा सजित है। [१४१-१४५]
विद्वानों द्वारा किये गये स्वप्न-निर्णय को मैंने भी सुना; क्योंकि उस समय मैं भी राज्यसभा में उपस्थित था। पहले महारानी कामलता ने मेरे श्वसुर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org