Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ८ : दस कन्याओं से परिणय
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और भवितव्यता ये चारों महापुरुष मेरे प्रतिकूल हो जाते हैं तब कर्मपरिणाम का सेनापति पापोदय मेरे विरुद्ध अपनी सारी सेना लेकर आ जाता है एवं अनेक अन्तरंग और बाह्य कारणों को प्रेरित कर मुझे अनेक प्रकार से पंक्तिबद्ध दु:ख पहुंचाता है । जब मैं अपनी स्वयोग्यता विकास-क्रम से, भगवान् सुस्थित महाराजा की कृपा से, यथार्थ ज्ञान को प्राप्त कर इनकी आज्ञा का पालन करता हूँ और भावान्धकार के प्रक्षालन से अपनी चित्तवृत्ति को निर्मल बनाकर चारित्रधर्मराज की सेना को प्रसन्न करता हूँ, तभी मेरे इस व्यवहार से कर्मपरिणाम आदि चारों महापुरुष मेरे अनुकूल होते हैं । पश्चात् कर्मपरिणाम का सेनापति पुण्योदय अपनी सेना के साथ मेरे पास आता है तथा बाह्य एवं अन्तरंग साधनों को प्रेरित कर मुझे सुख-परम्परा प्रदान करता है। इन सभी कारणों का समूह ही कार्य को उत्पन्न करता है, इनमें से अकेला कोई भी कारण कुछ भी कार्य उत्पन्न नहीं कर सकता। सम्पूर्ण सुख की जिज्ञासा
___ भगवन ! जैसा आपने बतलाया कि पुण्योदय ने ही मुझ इस प्रकार का किंचित् सुख प्राप्त करवाया है। आपके इन वचनों से मेरे मन में कुतूहल और जिज्ञासा उत्पन्न हुई है । मैं सोचता हूँ कि जिस दिन मुझे मदनमञ्जरी की प्राप्ति हुई उसी दिन मुझे दहेज में महामूल्यवान रत्नों की प्राप्ति हुई, चिन्तन मात्र से विद्याधरों का युद्ध रुका, दोनों सेनाओं में भ्रातृभाव हुना और वे मेरे सेवक बने, माता-पिता को संतोष हुअा, नगर में आनन्द महोत्सव हुअा, नगरवासी प्रमुदित हुए, विद्याधर मेरे घर आये, पिताजी ने उनका प्रातिथ्य सत्कार किया, मेरा यश सर्वत्र फैला, अतः वह दिन सूखों से परिपूर्ण होने के कारण मुझे अमृतोपम प्रतीत हुआ। इसके पश्चात् मदनमञ्जरी से प्रेम सम्बन्ध बढ़ा, कन्दमुनि के दर्शन हुए, सातावेदनीय, सदागम, सम्यग्दर्शन और गहिधर्म से मित्रता हुई, राज्य प्राप्ति हुई। मैं यथेच्छ सुखों में विलास करने लगा। इन यथेच्छ सुखों के सन्मुख मुझे देवलोक के सुख भी तुच्छ प्रतीत हुए । फिर आपके दर्शन हुए, सन्देह-निवारण हुआ। आपके मुखकमल के दर्शन और वचनामृत श्रवण से मुझे जो सुखातिरेक की प्राप्ति हो रही है वह वचनातीत है । इतने सारे सुख को आपने पुण्योदय द्वारा सम्पादित थोड़ा-थोड़ा सुख या सुखांश कहा, इसका क्या तात्पर्य है ? यदि यह सुखांश मात्र है तो फिर सम्पूर्ण सुख क्या है ? यह जानने की मेरे मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई है। कृपया समझायें कि सम्पूर्ण सुख किस प्रकार का होता है ?
प्राचार्य-राजन् ! सम्पूर्ण सुख का स्वरूप तो तुम अपने अनुभव से ही समझ सकोगे । उसे बताने से क्या लाभ ?
गुणधारण-प्रभो ! मुझे वह अनुभव कब और किस प्रकार होगा ?
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