Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ८ : निर्मलाचार्य : स्वप्न-विचार
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स्वयं स्वप्न में अदृश्य रहकर कर्मपरिणाम प्रादि के मुह से ही यह बात कहलाई कि वे ही सब कुछ कर्ता-धर्ता हैं ।
बाद में जब कर्मपरिणाम को यह ज्ञात हा तो उन्होंने कहा-पार्य पुण्योदय ! गुगधारण को तुमने ही सब प्रकार का सुख प्राप्त करवाया है। फिर भी तुमने स्वयं को प्रच्छन्न रखकर हम को इसका कर्ता बतलाया यह तो उचित नहीं है ।
पुण्योदय-देव ! आप ऐसा न कहें। मैं तो आपका आज्ञाकारी सेवक हूँ। परमार्थ से तो आप ही कर्ता हैं। वही मैंने स्वप्न में कनकोदर को बताया, इसमें अनुचित क्या है ?
कर्मपरिणाम-आर्य ! यह सत्य है, फिर भी परम हेतु तो तुम्ही हो । तुम्हारे बिना हम भी किसी को सुख प्राप्त नहीं करवा सकते, अतः तुम्हें भी स्वप्न में यह बात स्वयं कहनी चाहिये। जब तक तुम ऐसा नहीं करोगे तब तक हमारे चित्त को शान्ति नहीं मिलेगी।
पूण्योदय*-जैसी देव की प्राज्ञा। तत्पश्चात् कुलन्धर को स्वप्न में पाँच मनुष्य दिखाये, जिसमें चार तो पूर्वोक्त कर्मपरिणाम, कालपरिणति, स्वभाव और भवितव्यता ही थे और पांचवाँ स्वयं पुण्योदय था। पुण्योदय ने स्वप्न के माध्यम से यह बताया कि समस्त कार्यों की सफलता ये पाँचों ही प्रदान करते हैं।
हे राजन् गुणधारण! इस विवेचन से आपको यह स्पष्ट हो गया होगा कि ये चारों और ये पाँचों कौन थे ? वस्तुतः ये चारों और पाँचों ही आपके समस्त कार्य-कलापों की संघटना/योजना करते रहते हैं। अतः आपकी जिज्ञासा का समाधान हो गया होगा ? संशय न करें।
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* पृष्ठ ७०६
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