Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
संशय-निवारण
आचार्य-राजन् ! यह तो बड़ी लम्बी कथा है। इसे आद्योपान्त कैसे कहा और सुनाया जा सकता है ?
गुणधारण-यदि ऐसा है तब भी आप कृपाकर यह समस्त वार्ता मुझे सुनाकर मेरा संदेह दूर करें।
तब भगवान् निर्मलाचार्य ने असंव्यवहार नगर से लेकर अभी तक की मेरी सारी आत्मकथा संक्षेप में सुना दी।
तत्पश्चात् प्राचार्य ने कहा-राजन् ! तेरी चित्तवृत्ति में अनेक नगर-ग्रामों से व्याप्त एक बड़ा अन्तरंग राज्य है। इस राज्य से तेरे हितेच्छु चारित्रधर्मराज आदि को बाहर निकाल कर महामोह आदि शत्रुओं ने दीर्घ काल से इस पर आधिपत्य कर लिया था। इसका कारण यह था कि महाराजा कर्मपरिणाम भी* अभी तक तुम्हारे प्रतिकूल होने के कारण महामोहादि के बल को पुष्ट करते रहते थे किन्तु अभी-अभी वे तेरे अनुकूल हुए हैं। इन्होंने ही अपनी महारानी कालपरिगति को तेरे समक्ष किया है और तेरी पत्नी भवितव्यता को प्रसन्न किया है, अपने विशेष अधिकारी स्वभाव को भी तेरे पास भेजा है और तुम्हारे मित्र पुण्योदय को प्रोत्साहित किया है । इन्होंने ही महामोहादि शत्रुओं का तिरस्कार कर उन्हें कुछ दूर भगाया है और चारित्रधर्मराज आदि को आश्वासन दिया है। इन्होंने ही आज से पूर्व तुझे अनेक सुख-परम्परा के मार्ग दिखाये हैं। इनकी अनुकूलता से ही तुझे संदागम से स्नेह हुआ और सम्यग्दर्शन से मित्रता हुई है । सदागम और सम्यग्दर्शन के प्रति तेरे स्नेह के फलस्वरूप ही महाराज कर्मपरिणाम तेरे प्रति अधिक से अधिक अनुकूल होते रहे हैं। यही कारण है कि तूने विबुधालय में परिवार सहित निवास करते हुए विशिष्टतर सुख-परम्परा प्राप्त की। कर्मपरिणाम महाराजा ने तेरे मित्र पुण्योदय को प्रोत्साहित किया जिससे तूने मधुवारण राजा के यहाँ जन्म लिया और बहिरंग राज्य में तुझे मदनमंजरी जैसी पत्नी प्राप्त हुई । यह पुण्योदय विशिष्ट उत्तम प्रकृति का है । इस पुण्योदय ने एक समय विचार किया कि तुझे इस प्रकार के सुख-समूह प्राप्त कराने में उसका क्या स्थान है ? क्योंकि, समस्त कार्यों की संघटना तो पूर्ववणित चार महापुरुष ही करते हैं। इसी विचार से यथेच्छ रूप धारण करने वाले पुण्योदय ने कनकोदर राजा को स्वप्न में उन दो पुरुषों और दो स्त्रियों के दर्शन कराये, वे थे :-कर्मपरिणाम महाराजा, कालपरिणति महारानी, स्वभाव और भवितव्यता। इन्होंने ही स्वप्न में राजा को कहा था कि मदनमंजरी के लिये पहले से ही वर ढंढ़ कर रखा है, अतः अन्य वर ढढ़ने की आवश्यकता नहीं है। इसी ने मदनमंजरी को विद्याधरों से विमुख किया था। यह सब पुण्योदय के कार्य का ही दर्शन था । परन्तु, अपनी महानुभावता के कारण वह
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* पृष्ठ ७०८
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