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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
'मेरे ऐसे भाग्य कहाँ ?' धीरे से कह कर नीचा मुंह किये वह वहीं बैठी रही।
उस समय सूर्य अस्त हमा। सर्वत्र अन्धकार फैल गया। आकाश में तारे जगमगाने लगे । चकवे चकवी की जोड़ी का वियोग हुआ। कमल बन्द हो गये। पक्षी अपने-अपने घोंसलों में चले गये । उल्लू चारों तरफ उड़ने लगे ।* भूत, वैताल प्रसन्न हुए । प्राकाश में चन्द्रमा उग आया और उसकी शुभ्र चान्दनी चारों ओर फैल गयी। हमने पुत्री के मन को प्रसन्न रखने के लिये सारी रात कहानियाँ और अन्य चुटकले आदि सुनाकर बड़ी कठिनाई से बिताई।
प्रातः सूर्य के उदय होने पर मैंने लवलिका से कहा-लवलिका ! थोड़ी देर आकाश में खड़ी रहकर देखो, महाराजा कनकोदर पा रहे हैं या नहीं ? उन्हें इतनी देरी कैसे हो गयी? अभी तक नहीं आये। लवलिका आकाश में उड़ी, ऊपर जाकर थोड़ी देर स्थिर रही, फिर अत्यन्त हर्ष के साथ वापस भूमि पर आ गई । मैंने पूछा, अरे बहुत अधिक हर्ष हो रहा है, क्या बात है ? महाराजा पधार गये क्या ?
लवलिका-नहीं, माताजी! महाराज तो अभी नहीं आये हैं, पर कल वाले दोनों राजकुमार यहाँ आ पहुँचे हैं। वे मेरी सखी को ढंढते हुए पूरे उद्यान में फिर रहे हैं, पर हम जिस स्थान पर बैठे हैं, वह अति गहन होने से हम उनकी दृष्टिपथ में नहीं आये हैं। उनमें से एक जो मेरी सखी के हृदयवल्लभ हैं, मेरी सखी को न देखकर कुछ खिन्न हो रहे थे, तब उनके मित्र ने कहा-भाई गुणधारण! कल हम जिस आम्रवृक्ष के नीचे बैठे थे और जहाँ से तुमने उस पवनचालित कमलपत्र जैसी चंचल नेत्रों वाली और हृदय को चुराने वाली युवती को देखा था, उसी स्थान पर फिर चलें, इधर-उधर फिरने से क्या लाभ ? भाग्य अनुकूल होगा तो वहीं उससे भट (मुलाकात) हो जाएगी।
राजकूमार ने मित्र की बात स्वीकार की और दोनों कुमार अभी इसी आम्रवन में आ गये हैं । माताजी यही मेरे हर्ष का कारण है।
___मदनमंजरी-माताजी ! ऐसी कृत्रिम बातें बनाकर यह क्यों मुझे ठग रही है ? मदनमंजरी ने लवलिका की सब बात झूठी मानी और नि:श्वास छोड़ते हुए कहा । उसे विश्वास दिलाने के लिये लवलिका ने सैकड़ों सौगन्ध खायी, पर पुत्री मदनमंजरी को उस पर विश्वास नहीं हुआ।
इस प्रसंग को समाप्त करने के लिये मैंने कहा- लवलिका ! शपथ लेने से क्या लाभ ? तू मेरे साथ चल और कुमार को मुझे बता । उन्हें यहीं लाकर पुत्री को दिखादें जिससे इसे वास्तविक आनन्द प्राप्त हो सके। लवलिका के हाँ कहने पर दासी धवलिका को वहाँ छोड़ हम दोनों तुम्हारे पास आयी हैं।
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