Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
राजा का परिचय देना प्रारम्भ किया। प्रत्येक के नाम, गोत्र, वैभव, निवास स्थान, सौन्दर्य, गुण, आयुष्य, राज्यचिह्न आदि का परिचय दिया । जैसे
पुत्रि ! देख, यह विद्युत राजा के पुत्र अमितप्रभ विद्याधर है। गगनवल्लभ नगर के स्वामी हैं । बहुत ऋद्धिवान हैं । देवता जैसे सुन्दर हैं । सर्वकलाओं में प्रवीण हैं। इनकी पताका में सुन्दर मोर का चिह्न है जो बिजली जैसा चमक रहा है । [५५-५६]
वत्से ! ये गान्धर्वपुर नगर के स्वामी महाराजा नागकेसरी के पुत्र भानुप्रभ हैं । ये बहत शक्तिशाली, ऋद्धिवान, अत्यन्त मनोहर प्राकृतियुक्त, अनेक विद्याओं में प्रवीण, गुरणों के भण्डार और बहुत प्रसिद्ध हैं। इनके ध्वज में गरुड़ सुशोभित है। [५७-५८]
हे मदनमंजरि ! देख, ये रथनुपुर-चक्रवालपुर के महाराजा रतिमित्र के पुत्र रतिविलास हैं । ये अढलक सम्पत्ति और ऋद्धि-सम्पन्न हैं। इनका शरीर स्वर्ण जैसा सुशोभित है। ये सर्व विज्ञान के सागर और गुणों की खान हैं। इनके ध्वज में सुन्दर बन्दर का चिह्न है । [५६-६०] स्वयंवर-भंग
जैसे-जैसे मैं प्रत्येक राजा या राजपुत्र का वर्णन करते हुए धीरे-धीरे मदनमंजरी के साथ-साथ आगे बढ़ रही थी वैसे-वैसे मदनमंजरी का मुह उतरता ज : रहा था । वह विषाद को प्राप्त होती जा रही थी। [६१]
जैसे कोई निर्भागी स्त्री अपनी सौत के गुणों को सुनकर खिन्न हो जाय, आपत्ति-ग्रस्त योद्धा शत्रु-सेना की शक्ति को सुनकर उदास एवं निरुत्साह हो जाय, अभिमानी वादी जैसे प्रतिवादी के अतिशय को देखकर पीला पड़ जाय, ईर्ष्यालु वैद्य दूसरे कुशल वैद्य को प्राता देखकर जैसे पीछे हट जाय या विष्ठ ज्ञानी की अन्य विज्ञानी के नैपुण्य को देखकर मन की जैसी स्थिति हो जाय वैसी ही स्थिति उस समय विद्याधर नपतियों का वर्णन सुनकर मदनमंजरी की हो रही थी। उसने तो अपनी दृष्टि को भी ऊपर नहीं उठाया, नीचे दृष्टि किये वह अत्यन्त म्लानमुखी हो गई। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ । 'अरे ! इसको क्या हो गया' इस चिन्ता से मैंने कहा-पूत्रि ! क्या तुझे इन विद्याधर राजाओं में से कोई पसन्द आया ? क्या बात है ? क्यों कुछ भी नहीं बोलती ? मदनमंजरी ने तुरन्त उत्तर दिया-माताजी ! अब हम शीघ्र* इस मण्डप से चलें । मैंने सब के दर्शन कर लिये। मुझे तो इनमें से कोई भी योग्य नहीं लगा। इनके बनावटी वर्णन सुन-सुन कर मेरा सिर दर्द करने लगा है।
पुत्री का उत्तर सुनकर मैं चिन्तित एवं खिन्न हो गई । सोचा कि कहीं यह पागल तो नहीं हो गई ? जब मैंने महाराजा कनकोदर को सब बात बताई तब वे भी • पृष्ठ ६६२
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