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प्रस्ताव ७ : अनन्त भव-भ्रमण
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और प्रत्येक प्रसंग पर दुःख समुद्र के विस्तार का प्रतिक्षण साक्षात्कार करवाया ।* असंव्यवहार नगर के अतिरिक्त प्रत्येक नगर में भवितव्यता मुझे बार-बार ले गई और संसार के समस्त स्थानों पर मुझे भ्रमण करवाया । हे सुन्दरि ! महामोह के परिवार से घिरा हुआ और अपनी पत्नी भवितव्यता की आज्ञा का पालन करते हुए मैंने कौन-कौन सा नाटक नहीं खेला । हे भद्रे ! मेरी पत्नी ने परिग्रह की आड़ में प्रत्येक योनि में मुझे अनेक प्रकार से विडम्बित किया। उसने मुझे गृह-कोकिलिका (गोह) सर्प और चूहे के रूप धारण करवाये, जिसमें मैं धन के भण्डार को प्राप्त कर प्रसन्न होता था और उसकी रक्षा करता था तथा किसी के द्वारा उसका हरण कर लेने पर विह्वल होकर मृत्यु प्राप्त करता था। [८६६-८७४] भवितव्यता प्रसन्न
जैसे घर्षण-घूर्णन न्याय से नदी में घिसते-घिसते पत्थर भी गोल हो जाता है उसी प्रकार अनन्त काल तक घिसते-घिसते जब मैं कुछ ठीक हुया तब गजगामिनी भवितव्यता मुझ पर प्रसन्न हुई। अनन्त काल तक मेरे साथ भटक-भटक कर महामोह आदि भी थक जाने से अब कुछ निर्बल हो गये थे। हे सुमुखि ! मेरे पाप भी कम हुए थे, मेरी कर्मस्थिति भी कम हुई थी और मेरी कर्मग्रन्थी भी कुछ निकट आ गई थी। अतः अब भवितव्यता ने मुझे दूसरी गोली देकर मानवावास में उत्पन्न किया।
___ मनुजगति के भरत क्षेत्र में साकेतपुर नगर में नन्द नामक व्यापारी अपनी पत्नी घनसुन्दरी के साथ रहता था। भवितव्यता की गोली के प्रभाव से में धनसुन्दरी की कुक्षि से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । मेरा नाम अमृतोदर रखा गया। क्रमश: बढ़ते हुए काम-मन्दिर के समान मैं युवावस्था को प्राप्त हुआ । एक बार वहाँ जंगल में घूमते हुए मैंने सुदर्शन नामक साधु को देखा। उन्होंने भी कृपा कर मुझे उपदेश दिया। हे भद्रे ! उन्हीं के समीप मैने इन महात्मा सदागम को फिर देखा। मुनि के उपदेश से मेरे मन में कुछ भद्र परिणाम उत्पन्न हुए और मैंने द्रव्यतः/बाह्यतः श्रावकपन ग्रहण किया और नमस्कार मन्त्र आदि का उच्चारण/पाठ करने लगा।
[८७५-८८४] ___ मेरी एकभवभेदी गोली के समाप्त होने पर भवितव्यता ने मुझे दूसरी गोली दी जिसके प्रभाव से मैं भवचक्र में स्थित विबुधालय में भुवनपति देव के रूप में उत्पन्न हुआ। विबुधालय में भुवनपति, व्यंतर, ज्योतिष और कल्पवासी पाटकों में देव संज्ञक कुलपुत्र देव रहते हैं। पहले तीन के क्रमश: दस, पाठ और पाँच भेद हैं। कल्पवासी के कल्पस्थ और कल्पातीत दो भेद हैं । कल्पस्थ देवों के १२ और कल्पातीत के ह एवं पांच प्रावास हैं। हे भद्रे ! उपर्युक्त चार प्रकार के देवों में से प्रथम प्रकार के देवों में मेरा जन्म होने से मैं विबुध (देव) जाति का कुलपुत्र हुआ। हे
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