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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
और समग्र दृष्टि से मेरी सहायता करने योग्य है, अत: अकेले परिग्रह को अपने साथ लेकर मैं सदागम का नाश करने जा रहा हूँ।
महाराजा महामोह का अत्यन्त प्राग्रह देखकर सब ने मस्तक झुका कर उनके कथन को मान्य किया। [६०८-६१६]
हे भद्रे ! तत्पश्चात् महामोह और परिग्रह अत्यन्त उत्साह पूर्वक मेरे समीप आये । मैंने इन दोनों को प्राते हुए देखा । हे चपललोचना सुन्दरि ! अनादि काल से इनके विषय में अभ्यस्त होने के कारण मेरा इनसे स्नेह-सम्बन्ध पुनः शीघ्र ही स्थापित हो गया।
__ उसी समय मेरे पिता श्री जीमूतराज नरेन्द्र की मृत्यु हुई। सभी सम्बन्धियों और मंत्रियों ने मुझे राजगद्दी पर बिठाया। सभी सामन्तों ने मेरी आज्ञा स्वीकार की। शत्रु मेरे दास हो गये। अनेक विभूतियों से परिपूर्ण समृद्ध राज्य मुझे प्राप्त हुआ। मेरे राज्य-प्राप्ति का प्रान्तरिक कारण तो मेरा पुण्योदय मित्र था किन्तु महामोह के स्नेह में मग्न मैंने उस समय उसे नहीं पहचाना और यह सब परिग्रह मित्र का प्रभाव ही समझा । [६२०-६२४]
इधर जब मेरा मन शरीर, विषयभोग, राज्य, चित्र-विचित्र * विभूतियों और पौद्गलिक पदार्थों की तरफ आकर्षित होता रहता था उस समय सदागम मुझ परामर्श देता-भाई धनवाहन ! ये सभी वस्तुएँ क्षणभंगुर हैं, दुःख से पूर्ण हैं, मल से भरी हुई हैं, तेरे स्वभाव से विपरीत हैं, बाह्य-भ्रमण कराने वाली हैं, अतः हे धनवाहन ! तू इन पर मूर्छा मत रख । तेरी आत्मा ज्ञान, दर्शन, वीर्य और आनन्द से पूर्ण है। यह आनन्द स्थिर, शुद्ध और स्वाभाविक है और तुझे अन्तर्मुखी करने वाला है । अतः हे नरोत्तम ! तुझे उसी तरफ आकर्षित होना चाहिये । जिससे तू निरंतर प्रानन्द और निर्वृति को प्राप्त कर सके। [६२५-६२८]
_दूसरी तरफ महामोह मुझे शिक्षा देता कि मेरा राज्य, संपत्तियां, शरीर, शब्दादि इन्द्रिय-भोग और अन्य सभी जो ऐसे पदार्थ हैं वे स्थिर हैं, सूखपूर्ण हैं, निर्मल हैं, हितकारी हैं और उत्तम हैं । महामोह पुनः कहता कि जीव, देव, मोक्ष, पुनर्जन्म, पुण्य, पापादि कुछ भी नहीं है। यह संसार पंचभूत का बना हुआ है। अत: हे धनवाहन ! जब तक शरीर है तब तक इच्छानुसार खाओ, पीरो, आनन्द करो, रात-दिन सुन्दर भोग भोगो और मनोहर नेत्र वाली ललित ललनाओं के साथ यथेष्ठ काम-सुख भोगो । पहला मूर्ख पुरुष तुझे जो सीख देता है उसे तू मत मान ।
[६२६-६३३] इसी समय परिग्रह कहने लगा-हे घनवाहन ! सोना, अनाज, रत्न, आभूषण आदि प्रयत्न पूर्वक एकत्रित कर । अर्थात् तू घर बना, जमीन खरीद और चारों तरफ अपनी समृद्धि को बढ़ा । इसके लिये यथाशक्य प्रयत्न कर । जो प्राणी
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