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प्रस्ताव ७ : श्रुति, कोविद और बालिश
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वहाँ भेज दिया गया था। श्रु ति ने कोविद और बालिश दोनों को पसद किया और दोनों से विवाह किया।
कोविद और बालिश के स्वाधिकार में निजदेह नामक पर्वत था जिसके ऊपर मूर्धा नामक महाशिखर था। इस शिखर के दोनों तरफ श्रवण नामक कपाट युक्त दो कक्ष थे । श्र ति ने इन दोनों कक्षों को देखा और अपने निवास के लिये पसंद किया । पति की आज्ञा लेकर वह इन दोनों कमरों में रहने लगी। इस प्रकार श्र ति श्रवरणप्रासाद में कोविद और बालिश के साथ विचरण करने लगी। बालिश और श्रुति
___इधर श्रुति को प्राप्त कर * बालिश प्रसन्न हुआ। अत्यन्त हर्षित होकर वह सोचने लगा कि, अहा ! मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मुझे पुण्य के प्रभाव से इतनी सुन्दर मनोहर थु ति नामक स्त्री प्राप्त हुई है । मैं भाग्यवान हूँ, कृतकृत्य हूँ, पुण्यवान हूँ। [६५१-६५२]
उसे श्र ति के प्रति स्नेहपरायण जानकर, अवसर देखकर एक दिन संग उसके पास गया और मधुर वाणी में बोला
हे देव ! आपके अत्यन्त हितेच्छू कर्मपरिणाम महाराजा ने मेरी स्वामिनी श्रु तिदेवी का विवाह आपके साथ किया यह बहुत ही उत्तम कार्य हुआ। महाराज ! रूप, वय, कुल, शील और लावण्य में समानता होने पर पति-पत्नी में परस्पर प्रेम होता है, किन्तु इन सब में समानता बहुत कठिनाई से प्राप्त होती है । आप पुण्यवान हैं कि आपको पुण्य-कर्मों से इन सब में समानता प्राप्त हुई है। अब इस मनोहर प्रेमसम्बन्ध को यथाशक्य अधिकाधिक बढ़ाने की आवश्यकता है। [६५३-६५६]
शठात्मा दासपुत्र संग के वाक्य सुनकर बालिश बोला-भाई संग ! तेरी बात तो ठीक है, पर यह तो बता कि यह प्रेम-सम्बन्ध कैसे बढ़े ?
संग-प्रिया को जो वस्तु अधिक प्रिय हो, उसका उसे बार-बार उपभोग करवाने से प्रेम-सम्बन्ध बढ़ता है।
बालिश-मेरी प्रिया को कौनसी वस्तु अधिक प्रिय है, यह तो बता ? संग--देव ! इन्हें मधुर ध्वनि बहुत प्रिय है।
बालिश-यदि ऐसा ही है तो मैं ऐसा प्रबन्ध कर दूंगा कि एक क्षण के भी विश्राम बिना वह निरन्तर मधुर ध्वनि सुनती ही रहे।
संग-धन्यवाद कुमार ! आपकी बड़ी कृपा ।
प्रियतमा की प्रिय वस्तु को बताने वाले उसके दासपुत्र संग पर बालिश को अत्यधिक प्रेम उत्पन्न हुआ, अत: उसने उसे अपने हृदय में स्थापित कर लिया।
[६५७-६६०] * पृष्ठ ६६३
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