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प्रस्ताव ७ : शोक और द्रव्याचार
है उसका कचूमर निकाल देता है । यह कृतान्त (यमराज) हिमकरण जैसा व्यवहार कर सज्जन रूपी सुन्दर कमल और लोगों की आंखों के तारों को क्षण भर में सुखा देने वाला है । मनुष्य शरीरधारी को मंत्र-तंत्र, धन के ढेर, बड़े-बड़े निपुण वैद्य, रामबाण औषधियां, भाई-बन्धु और स्वयं इन्द्र भी यमराज से नहीं छुड़ा सकता । मृत्यु ऐसा उपद्रव है जिसका प्रतीकार / प्रतिशोध अशक्य है । एक दिन सभी को जाना है, फिर इस सिद्ध मार्ग पर किसी को जाते देख कर कौन समझदार व्यक्ति घबरायेगा ? विह्वल होगा ? [ ७१६ - ७२८]
महाभाग्यशाली अकलंक मुनि मेरे शोक को दूर करने के लिये अश्रान्त होकर प्रतिदिन मुझे धर्मोपदेश देते रहते । भिन्न-भिन्न प्रकार से जीवन-मरण के सम्बन्ध में बताते । मृत्यु सम्बन्धी विशिष्ट तत्त्वज्ञान के भरने मेरे समक्ष बहाते, परन्तु महामोह के वशीभूत मैं शोक की चाल ही चलता और महात्मा अकलंक के वचनों पर ध्यान नहीं देता । मैं हतबुद्धि होकर बार-बार रोता । हे बाले ! प्रिये ! प्रियतमे ! सुन्दरी ! प्रेमिके ! हे सुमुखि ! हे कमलनयने ! सुन्दर भौरों वाली ! कान्ता ! मृदुभाषिणी ! पतिवत्सला ! पतिप्र ेमी ! पतिव्रता ! हा देवी मदनसुन्दरी ! तेरे प्राणप्यारे घनवाहन को इस प्रकार रोता छोड़कर तू कहाँ चली गई ? प्यारी ! तू मुझे शीघ्रता से एक बार अपना दर्शन देदे । इस रोते विरही से एक बार बात करले । प्रिये ! यहाँ आकर एक बार मुझ से मिल जा और मेरी इस अत्यन्त दयनीय स्थिति को अपनी उपस्थिति से दूर कर दे ।
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हे भद्र ! मैं तो महात्मा श्रकलंक के समक्ष भी निर्लज्ज होकर इस प्रकार अनर्गल प्रलाप करता रहता और वे मुझे बार-बार उपदेश दे रहे हैं, इस पर तनिक भी लक्ष्य नहीं देता । [ ७२९–७३४]
हे भद्र े ! महामति अकलंक सब कुछ देखते, मोह के साम्राज्य पर विचार करते । स्वयं महाबुद्धिशाली, दयावान, परोपकारी तथा मेरे प्रति स्नेहशील होने से मेरी दयनीय स्थिति को देखकर वे पुनः मुझे उपदेश देने लगे :- – [ ७३५]
महाराज घनवाहन ! तेरे जैसे के लिये ऐसा बच्चों जैसा व्यवहार योग्य नहीं है । तू पुरुषत्वहीनता को छोड़, धैर्य धारण कर, अन्तःकरण से स्वस्थ बन, अपनी आत्मा को स्मरण कर, अपना एकान्त अहित करने वाले महामोह का त्याग कर, शोक को * छोड़ और परिग्रह का सम्पर्क शिथिल कर । सदागम का अनुसरण कर और उसके उपदेश के अनुसार ग्राचरण कर जिससे कि मेरे चित्त को प्रसन्नता हो । भाई ! क्या तू इतने ही दिनों में उन प्रथम मुनि की लोकोदर में प्राग ( संसाराग्नि ) की कथा भूल गया ? क्या तू संसार मद्यशाला की कथा भी भूल गया ? क्या संसार रहट चक्र की बात भी तुझे याद नहीं रही ? क्या संसार मठ में रहने वाले लोगों के सन्निपात और उन्माद की बात तेरे लक्ष्य में नहीं रही ? मनुष्य
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