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प्रस्ताव ६ : हरि राजा और धनशेखर
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हरि राजा-महाराज ! यदि इतने मात्र से इतना बड़ा महासुखदायी राज्य मिल जाता हो तो फिर विलम्ब क्यों किया जाये ? शुभ कार्य में देरी क्यों की जाये ? हे भदन्त ! आप मुझे अविलम्ब भागवती दीक्षा प्रदान करने की कृपा कीजिये । [६८६-६६०]
राजा के उपरोक्त वचन सुनकर सूरि महाराज के नेत्र प्रानन्द से विकसित हो गये । वे बोले-राजन् ! आपने अत्युत्तम बात कही । यह महान् राज्य सर्वोच्च और महासुख-परम्परा का दाता है तथा दीक्षा लेने से प्राप्त हो सकता है । इस वास्तविकता को जानकर कौन बुद्धिमान व्यक्ति इस कार्य से पीछे हटेगा ? थोड़े के लिए अधिक को खोने की बात कौन बुद्धिमान व्यक्ति स्वीकार करेगा? आप तो निःसंदेह रूप से भगवान् के मत की दीक्षा लेने के सचमुच योग्य हैं । योग्यता बिना हम इस सम्बन्ध में प्रयत्न भी नहीं करते । आप योग्य हैं, अतः प्रसन्नतापूर्वक दीक्षा ग्रहण कीजिये और अक्षय आनन्द को प्राप्त कीजिये । [६६१-६६३]
गुरु महाराज के वचनों को उसी प्रकार शिरोधार्य करते हुए हरि राजा ने अपने महाविवेकी मंत्री और सेनापति के साथ मंत्रणा की और अपने शार्दूल नामक पुत्र को राज्य गद्दी पर स्थापित कर दिया । पश्चात् जिनेश्वर भगवान् के मन्दिर में आठ दिन तक बड़े ठाठ-बाट से महोत्सव मनाया, अभिलाषियों को अर्थदान दिया, गुरु महाराज का पूजा-सम्मान किया, बड़ों को सम्मानित किया, सम्पूर्ण नगर के सभी लोगों के आनन्द में सभी प्रकार से वृद्धि की और उस समय करने योग्य सभी क्रियाएं पूर्ण की। आवश्यक कार्य और कर्तव्य पूर्ण कर, अपनी प्रिय पत्नी मयरमंजरी, अनेक प्रमुख राजाओं और प्रधानों के साथ नगर से बाहर निकल कर, उन सब ने विधिपूर्वक उत्तमसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की । हरि राजा ने निरन्तर आनन्द देने वाले सर्वोत्कृष्ट सुन्दर राज्य को प्राप्त किया और प्रानन्द में लीन होकर अपने आत्मिक स्वराज्य में वृद्धि करते हुए पृथ्वी पर विहार करने लगे।
[६६४-६६८] लोभ से धनशेखर की मृत्यु
संसारी जीव अपनी आत्मकथा को आगे बढ़ाते हए अगहीतसंकेता से कह रहा है-हे अगृहीतसंकेता ! मेरे मित्र मैथुन और सागर मुझ से चिपटे रहे। मैं उन्हें नहीं छोड़ सका । परिणामस्वरूप उन्होंने मुझ से अनेक नाटक करवाये। धन का लोभी होने से मैं कई देशों में भटकता फिरा और अनेक प्रकार के क्लेश प्राप्त किये । अनेक नगरों और ग्रामों में भटकते हुए मैं एक बार एक बीहड़ जंगल में प्रा पहुँचा। थका होने से मैं एक बेल के वृक्ष के नीचे आराम करने बैठ गया । वहाँ ऊपर दृष्टि करते ही मैंने देखा कि बेल वृक्ष की एक शाखा से* अंकूर फूट कर नीचे जमीन तक आया हुआ है। लक्षणों के अनुसार मैंने निर्णय किया कि इस वृक्ष के
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