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४. प्ररहट-यन्त्र
बुधनन्दन उद्यान के मन्दिर के बाहर अलग-अलग बैठकर ज्ञान-ध्यान करने वाले मुनियों में से अब हम तृतीय मुनि के पास पहुँचे। अकलंक ने अत्यन्त भक्तिपूर्वक सच्चे हृदय से मुनि को वन्दन किया,* मैंने भी वन्दन किया। फिर अत्यन्त विनयपूर्वक अकलंक ने मुनि से वैराग्य का कारण पूछा, तब मुनि ने कहा कि पानी निकालने के एक अरहट्ट (रहँट) यन्त्र को देखकर मुझे वैराग्य हुआ ।
अकलंक ने सोचा कि जिस प्रकार प्रथम मुनि को आग को देखकर और दूसरे मुनि को मद्यशाला को देखकर वैराग्य हा वैसे ही इस मुनि को रहँट को देखकर वैराग्य हुआ होगा । आनन्दित और स्मित हास्य से मनोहर दिखने वाले इस महात्मा से इस सम्बन्ध में विशेष पूछने पर कुछ नवीन तथ्यों की जानकारी प्राप्त होगी, यह सोचकर प्रसन्न-वदन अकलंक ने मुनि से पूछा-महाभाग ! रहँट से आपको वैराग्य किस प्रकार हुआ। [२०३-२०६]
मुनि बोले -- हे नरोत्तम ! सुनो, मैंने जिस पानी निकालने के अरहट्ट यन्त्र (रहँट) को देखा, वह पूरे वेग से चल रहा था। वह रात-दिन चलता था। वह सम्पूर्ण एक ही यन्त्र था और उसका नाम भव था। इसको खेंचने (चलाने) वाले राग, द्वेष, मनोभाव और मिथ्यादर्शन नामक चार खेडूत साथी थे। इन सब के ऊपर महामोह था, उसी महापुरुष के प्रताप से यह यन्त्र चल रहा था। इस रहँट यन्त्र को चलाने के लिये सोलह कषाय रूपी बैल लगे हुए थे जो बिना घासपानी के भी चलते थे, फिर भी बहुत बलवान और उद्धत थे, अत्यन्त वेगवान और शीघ्रता से काम करने वाले थे। रहँट पर काम करने वाले हास्य, शोक, भय आदि कुशल सेवक थे और जुगुप्सा, रति, अरति आदि दासियां कार्य-तत्पर थीं। इस यन्त्र पर दुष्टयोग और प्रमाद नामक दो बड़े तुम्बे लगे थे। विलास, उल्लास और विब्बोक चेष्टा नामक आरे इस यन्त्र के चक्र में लगे हुए थे। [२०७-२१२] , वहाँ असंयत-जीव नामक महाभयंकर अतिगहन कूप था जो अविरति रूपी जल से भरा था और वह इतना गहरा था कि इसका तल भी दिखाई नहीं देता था। उस यन्त्र में जीवलोक नामक अत्यन्त विस्तृत और लम्बी घटमाला लगी थी जो पाप और अविरति रूपी पानी से भर-भर कर बाहर आकर खाली होती थी। इस यन्त्र को मरण नामक नौकर बार-बार चलाता था, उस समय पट्टिका-घर्षण से उत्पन्न खट-खट की तेज आवाज को विवेकी पुरुष दूर से ही सुन लेते थे।
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