Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ७ : सदागम का सान्निध्य : अकलंक की दीक्षा
२७१
अपने सगे-सम्बन्धी हों या अपने शत्रु हों या अपने को हानि पहुँचाने वाले हों, इन सब पर जब चित्त में एक समान भाव होंगे, एक पर राग और दूसरे पर द्वेष नहीं होगा, तभी तुझे परम सुख की प्राप्ति होगी ।
पाँचों इन्द्रियों के विषय अच्छे हों या बुरे, सुखदायी हों या दुःखदायी, इन सब पर जब चित्त में एक समान वृत्ति होगी, किसी विषय पर प्रेम और किसी का तिरस्कार नहीं होगा, तभी तुझे परम सुख की प्राप्ति होगी ।
गोशीर्ष चन्दन से शरीर पर लेप करने वाले मनुष्य पर और छुरी से घाव करने वाले मनुष्य पर जब मन में लेशमात्र भी भेद-भाव नहीं होगा, प्रभिन्न चित्तवृत्ति होगी, तभी तुझे परम सुख की प्राप्ति होगी ।
संसार के सभी पदार्थ पानी के समान हैं, तेरा चित्त रूपी कमल इन्हीं से उत्पन्न है । और, इन्हीं के निकट रहते हुए भी जब इनमें लिप्त नहीं होगा, जैसे कमल पानी से अलग रहता है वैसी स्थिति जब तेरे चित्त की होगी, तभी तुझे परम सुख की प्राप्ति होगी ।
उद्दाम यौवन से दैदीप्यमान लावण्य और प्रत्यन्त सुन्दर रूपवती ललित ललनाओं को देखकर भी जब मन में किंचित् भी विकार पैदा नहीं होगा, तेरे चित्त की स्थिति जब ऐसी निर्विकार स्वरूप होगी, तभी तुझे परम सुख की प्राप्ति होगी । अत्यन्त आत्म-सत्त्व को धारण कर जब चित्त, अर्थ और काम सेवन से विरक्त होगा, पराङ्मुख होगा और धर्म में ग्रासक्त होगा तभी तुझे परम सुख की प्राप्ति होगी ।
जब मन राजस् और तामस् प्रकृति का त्याग कर स्थिर समुद्र के समान कल्लोल रहित शांत और सात्विक बनेगा, तभी तुझे परम सुख की प्राप्ति होगी ।
जब चित्त मैत्री, करुणा, मध्यस्थता और प्रमोद भावना से युक्त होकर मोक्ष प्राप्ति में एकरस होकर लगेगा, तभी तुझे परम सुख की प्राप्ति होगी ।
भाई घनवाहन ! इस जगत में प्राणी को सुख प्राप्त करने के लिये चित्त के अतिरिक्त अन्य कोई साधन उपलब्ध नहीं है । त्रैलोक्य में सुख प्राप्ति का एक मात्र यही साधन है । [५३५-५४५ ]
हे गृहीतसंकेता ! कलंक के पूर्वोक्त वचनामृत को सुनकर मैं किंचित् आह्लादित हुआ। फिर मेरे मित्र प्रकलंक ने दृष्टान्त रूपी मुद्गर से मेरी अत्यधिक सघन कर्म-पद्धति को काट दिया, जिससे मैं लम्बे काल की कर्म-स्थिति को पार कर शेष अल्प काल की कर्मस्थिति के निकट पहुँच गया । यह अल्पकालीन कर्मस्थिति शीघ्र तोड़ी जा सके, ऐसी है । [ ५४६ - ५४८ ]
हे विशालाक्षि ! वामदेव के प्रस्ताव [भव ] में बुधसूरि ने जो वचन कहे थे वह तो तुझे याद ही होंगे ? *
* पृष्ठ ६५७
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