Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ७ : सदागम का सान्निध्य : अकलंक की दीक्षा
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निर्मित सीढ़ियों तक पहुँच जायेगा। वहाँ यह बन्दर टोली तेरे बच्चे के शरीर पर शुक्लध्यान नामक गोचन्दन रस का ठण्डा लेप करेगी। इन सीढ़ियों पर चढ़ते-चढ़ते जब तेरा बच्चा आधे रास्ते तक पहुँच जायगा तब वह गाढ आनन्द में प्रोत-प्रोत हो जायेगा। इससे ऊपर की सीढ़ियों पर चढ़ने में यह असमर्थ होगा । हे सौम्य ! यह बन्दर का बच्चा क्योंकि तेरा जीवन है, तेरा आन्तरिक धन है और तेरे ही साथ एकमेक है, अतः जैसे-जैसे यह ऊपर चढ़ेगा वैसे-वैसे तू भी ऊपर चढ़ता जायेगा। अब यह बच्चा आगे नहीं चढ़ सकता, अतः तुझे यहीं छोड़ देगा। आगे की सीढ़ियों पर तुझे स्वयं चढ़ना पडेगा। * अन्त में इन सीढियों को भी छोड़कर स्व सामर्थ्य से पाँच ह्रस्व अक्षर के उच्चारण समय तक आकाश में अधर रहकर, अपने कमरे/ गर्भगृह और बन्दर के बच्चे का त्याग कर, कूदकर, एक झपट्टे में बाजार को छोड़कर, तपाक से उड़कर शिवालय में प्रविष्ट हो जाना। वहाँ पहले से अवस्थित लोगों के बीच अनन्त काल तक रहकर अनन्त प्रानन्द का अनुभव करते रहना ।
मैंने कहा- जैसी गुरुदेव की आज्ञा । भद्र अकलंक ! मेरे गुरुजी ने उस समय मुझे बताया था कि इस प्रकार यह बन्दर का बच्चा तुझे मठ/शिवालय में ले जाने में समर्थ है।
__ छठे मुनिराज के भावार्थ से पूर्ण और अत्यन्त रहस्यमय उपर्युक्त वचन सुनकर अकलंक ने मुनिराज को वन्दन किया और कहा--हे मुनिराज! आपके श्रेष्ठतम आचार्य भगवान् ने आपको अत्यन्त सुन्दर उपदेश दिया। आप उसे आचरण में उतार रहे हैं यह अत्यन्त प्रशंसनीय है। आप जैसे प्रभावशाली व्यक्ति के लिये यही उचित है। [५१६-५२०]
यों छठे मुनिराज को नमस्कार कर हम आगे बढ़े ।
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१०. सदागम का सान्निध्य : अकलंक की दीक्षा
हे अगृहीतसंकेता ! छठे मुनिराज के पास से जब हम आगे चले तो भाग्यशाली अकलंक को मुझे सम्यक्बोध देने की इच्छा जागृत हुई, अतः थोड़ा रुक कर उसने कहा-भाई घनवाहन ! इन मुनि महाराज ने स्पष्ट शब्दों में जो बातचीत की उसका गूढार्थ तुझे समझ में आया या नहीं ? देख, इन श्रमण भगवन्त ने महत्व की बात हमें कही है। [५२१-५२२]
* पृष्ठ ६५५
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