Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ७ : संसार - बाजार ( द्वितीय चक्र )
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का नाम क्रमशः कृष्ण, नील, कपोत, तैजस्, पद्म और शुक्ल हैं । ये इसी गर्भगृह में उत्पन्न होती हैं, यहीं की समृद्धि से पलती हैं, यहाँ बढ़ती हैं और इसी स्थान को पुष्ट करती हैं । इनमें से पहले की तीन क्रूरतम क्रूरतर और क्रूर हैं । ये तीनों अनेकों अनर्थ - परम्पराओं की कारणभूत हैं और बन्दर के बच्चे की तो वास्तविक शत्रुभूत ही हैं। गर्भगृह में अनेक प्रकार के अशुभ कचरे की वृद्धि करने की हेतु हैं । तुझे भी इन अनेक दुःखों से पूर्ण बाजार में रखने और शिवालय-गमन में विघ्नदायक ये तीनों ही हैं । पुनः हे भद्र ! अन्य तीन शुद्ध, शुद्धतर और शुद्धतम स्वरूपधारिणी हैं । वे अनेक प्रकार की ग्राह्लाद-परम्परा को प्रदान करती हैं, बन्दर के बच्चे की सहायक बहिनों के समान हैं, गर्भगृह को शुद्ध करने वाली हैं और तुझे इस निस्सारता की परम्परा से ओत-प्रोत बाजार से निकाल कर शिवालय पहुँचाने में अनुकूलता प्रदान करने वाली हैं । इन छहों ने गर्भगृह में ऊपर चढ़ने के लिये अपनी शक्ति से परिणाम नामक सीढ़ियां बना रखी हैं । इस पर चढ़ने के लिये प्रत्येक ने क्रमश: एक के ऊपर एक असंख्य असंख्य अध्यवसाय नामक सीढियां बनाई हैं जो अध्यवसाय स्थान नाम से प्रसिद्ध है । कृष्ण लेश्या ने जो असंख्य सीढ़ियां बनाई हैं, वे काले रंग की हैं । नील लेश्या द्वारा नीले रंग की, कपोत लेश्या द्वारा कबूतरी रंग की, तेजस् लेश्या द्वारा विशुद्ध चमचमाती, पद्म लेश्या द्वारा श्वेत कमल जैसी और शुक्ल लेश्या द्वारा विशुद्ध स्फटिक जैसे निर्मल श्वेतरंग की असंख्य सीढ़ियां बनाई गई हैं । बन्दर का बच्चा जब तक पहली तीन लेश्याओं द्वारा बनाई सीढ़ियों पर घूमता है तब तक उछल-उछल कर झरोखे की तरफ दौड़ता है और आम्रवृक्ष (विष वृक्ष) पर छलांग मारता है । छलांग मारते हुए नीचे गिरता है और उसका पूरा शरीर धूलिधूसरित हो जाता है । वहाँ चिकनाई की बूंदों से उसके शरीर पर सैंकड़ों धारियां पड़ जाती हैं। शरीर क्षत-विक्षत ौर जर्जरित हो जाता है । फिर चूहे बिल्ली आदि विशेष उपद्रवों द्वारा उसे अधिकाधिक त्रास देते हैं, जिससे वह नष्टप्राय: सा / मूच्छित सा भयंकर आकृति वाला बन जाता है और निरन्तर संतप्त स्थिति में दिखाई देता है । इस स्थिति में यह बन्दर का बच्चा (चित्त) तेरे लिये भी अनन्त दुःखदायी परम्पराम्रों का कारण बनता है । अतः तुझे इस बच्चे को पहली तीन लेश्याओं द्वारा निर्मित सीढ़ियों से ऊपर चौथी लेश्या द्वारा निर्मित सीढ़ियों पर चढ़ाना चाहिये । यहाँ उसे प्रतिक्षण संताप कम होने लगेगा । बाधा - पीड़ायें कम होने लगेंगी, चूहे, बिल्ली, मच्छर आदि के उपद्रव कम होंगे और आम्रफल ( विषफल ) खाने की इच्छा कम हो जायगी । फिर मकरन्द की स्निग्धता के सूखने से शरीर पर चिपकी हुई धूल नीचे गिरेगी और उसे किंचित् सुख प्राप्त होगा तथा शरीर तेजस्वी एवं स्वरूपवान बनेगा । इसके पश्चात् तुझे पांचवीं लेश्या द्वारा निर्मित सीढ़ियों पर चढ़ाना चाहिये । यहाँ संताप और कम होंगे, उपद्रव बहुत कम होंगे, अपश्य आम्र फल खाने की इच्छा बहुत कम हो जायगी, शरीर सूख जायगा और उस पर लगी धूल-कचरा अधिकांश
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