________________
प्रस्ताव ७ : संसार-बाजार (प्रथम चक्र)
२५६
__ बाजार और मठ का वर्णन सुनने के पश्चात् अकलंक ने पूछा--महाराज ! आपके गुरु महाराज ने पापको किस प्रकार के कर्त्तव्य बतलाये ?* जिनके बल पर आप मठ में पहुँचना चाहते हैं ? कृपा कर मुझे विस्तार से समझाइये । [४४५]
मुनिराज बोले-सौम्य अकलंक ! सुनो। मेरे गुरु महाराज ने उस समय मुझे कहा था :
भद्र ! तेरी सम्पत्ति अधिकार में रहने के लिये एक सुन्दर कमरा है, जिसका नाम काया है । इसके पंचाक्ष नामक झरोखे हैं और क्षयोपशम नामक गर्भगृह है। इसके पास ही कार्मण शरीर नामक भीतरी चौक या कमरा है। इस भीतरी कमरे/ चौक में एक चित्त नामक अति चपल बन्दर का बच्चा रहता है। ___ यह सुनकर मैंने कहा-यह सब ठीक है।
पुनः गुरु ने कहा- इन सब को साथ में रखकर ही तुझे दीक्षा लेनी है, क्योंकि योग्य अवसर की प्राप्ति के पहले इनका त्याग नहीं हो सकता।
मैंने कहा-जैसी आपकी आज्ञा ।
तत्पश्चात् गुरु महाराज ने मुझे दीक्षा दी और समझाया-भद्र ! इस बन्दर के बच्चे का तुझे भली प्रकार रक्षण करना चाहिये।
मैंने कहा--जैसी आपकी आज्ञा ! आप कृपा कर मुझे यह तो बतायें कि इस बन्दर के बच्चे को किससे भय है ? जिससे मैं उन भयों से उसकी रक्षा कर सकू।
उत्तर में गुरु महाराज ने बताया-सौम्य ! यह बन्दर का बच्चा जिस चौक में रहता है, वहाँ अनेक प्रकार के उपद्रवकारी तत्त्व हैं। वहाँ कषाय नामक चपल चूहे उस बेचारे को काटते रहते हैं, नोकषाय नामक डंक मारने में पटु भयंकर बिच्छु डंक मारते रहते हैं, संज्ञा नामक क्रूर बिल्लियां खा जाती हैं, राग-द्वेष नामक भयंकर मोटे चूहे इसे हड़प कर जाते हैं और महामोह नामक अतिरौद्र बड़ा बिल्ला इसे पूरा ही निगल जाता है । परिषह उपसर्ग नामक डांस-मच्छर इसे बारबार काट कर सन्तप्त करते रहते हैं, दुष्टाभिसन्धि और वितर्क नामक वज्र जैसी सूण्डों वाले खटमल इसका खून चूस लेते हैं, झूठी चिन्ता नामक गिलहरियाँ बारबार पीड़ित करती हैं और रौद्राकार प्रमाद नामक तिलचट्टे बारंबार तिरस्कृत/ पराजित करते हैं । अविरति कीचड़ नामक जूए बार-बार डंक मारती हैं और मिथ्यादर्शन नामक अति घोर अन्धेरा उसे अन्धा बना देता है । हे भद्र। इस बन्दर के बच्चे को गर्भगृह चौक में रहते हुए ही स्थायी रूप से निरन्तर ऐसे अनेक उपद्रव होते रहते हैं, जिसकी तीव्र वेदना को बेचारा चित्त बन्दर-बालक सहन नहीं कर सकता और रौद्रध्यान रूपी खैर के अंगारों से धधकते कुण्ड में कूद पड़ता है। किसी
* पृष्ठ ६४६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org