Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
व्यापार के लिये उसे समय ही नहीं मिलता था। रत्न-परीक्षा से अनभिज्ञ वह वास्तविक अमूल्य रत्नों से तो द्वष करता था और धूर्तों द्वारा रत्न कहकर बेचे गये शंख, कांच के टुकड़े, कौड़ियां आदि खरीद लेता था। बाग-बगीचों में घूमने तथा कौतुक देखने में ही वह अपना समय नष्ट करता था। [३२६-३३१]
जब चारु का जहाज रत्नों से भर गया तब उसने वापस लौटने का सोचा और अपने अन्य मित्रों का हाल भी जानना चाहा। सब से पहले वह अपने मित्र योग्य के पास पहुँचा और उसे बताया कि उसका जहाज तो रत्नों से भर चुका है, अतः वह अपने देश लौटना चाहता है। उसके क्या हाल हैं ? क्या वह भी उसके साथ देश में लौटने को तैयार है ? [३३२-३३३]
योग्य ने बताया कि उसे तो अभी बहुत थोड़े ही रत्न प्राप्त हुए हैं, जहाज अभी तक भरा नहीं है। जब चारु ने इसका कारण पूछा तब उसने बताया कि उसका बहुत सा समय घूमने-फिरने में बीत गया था। चारु ने समझाया-मित्र ! बाग-बगीचे देखने का शौक ठीक नहीं है ।* यहाँ आकर भी यदि रत्न एकत्रित नहीं किये तो अपने आपको ठगना ही हुआ। तेरे जैसे के लिये यह बात योग्य नहीं है । मित्र ! तू जानता है कि रत्न सुख के कारण हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिये ही हम यहाँ आये हैं, तदपि उस लक्ष्य की उपेक्षा करना या उस तरफ पूरा ध्यान न देना तो आत्म शत्रुता ही है । यह तो अपने हाथों अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा हुमा । तू इतने दिनों बाग-बगीचों में घूमा उससे तेरा पेट तो नहीं भरा ना? तब बुद्धिमानी तो इसी में है कि जिससे अपना स्वार्थ सिद्ध हो वही कार्य पहले किया जाय, क्योंकि अपने स्वार्थ का नाश करना तो मूर्खता है। क्या तुझे लज्जा नहीं आती कि तू जिस काम के लिए यहाँ आया था उसे छोड़कर अन्य कामों में व्यर्थ ही अपना समय खो रहा है ? भाई ! अब मेरे कहने से इस मौज-शौक को छोड़कर सतत प्रयत्न पूर्वक रत्न एकत्रित करने में लग जा। यदि तू मेरा कहना नहीं मानेगा तो मैं तुझे यहीं छोड़कर देश लौट जाऊंगा, क्योंकि मेरा प्रयोजन तो सिद्ध हो चुका है । जैसा तूने अभी तक समय खोया वैसा ही भविष्य में भी खोता रहेगा तो अपने स्वार्थ से भ्रष्ट होगा और दुःखी होगा। [३३४-३४१]
___ चारु के उपयुक्त वचनों से योग्य अपने मन में बहुत लज्जित हुआ और उसने अपने मित्र को विश्वास दिलाया कि अब वह उसके कहे अनुसार ही करेगा, अन्य कोई कार्य नहीं करेगा। वह थोड़े दिन और रुक जाय और उसे भी अपने साथ ही लेकर देश लौटे। चारु के स्वीकार करने पर योग्य ने मौज-शौक को छोड़कर अपना सारा समय रत्न एकत्रित करने में लगा दिया। [३४२-३४४]
अब चारु अपने दूसरे मित्र हितज्ञ के पास आया। उससे भी उसने वही बात कही कि उसका जहाज तो रत्नों से भर चुका है इसलिये वह देश लौटना
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