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प्रस्ताव ७ : घनवाहन और अकलंक
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चारित्र-सम्पन्न, मधुर-भाषी, तेजस्वी, स्थूल देहधारी और कुल-नाशक होता है । इसकी जन्म से १८ वें दिन तक मृत्यु की संभावना होती है, इससे बच जाय तो ७७ वर्ष तक जीवित रहता है । [३६-४१]
१०. मकर-इस राशि वाला व्यक्ति दुराचारियों का प्रिय, स्त्रियों के वशीभूत, पण्डित, परस्त्री आसक्त और गायक होता है । इसके गुप्तांग पर निशान होता है। अनेक पुत्रों वाला, फूलों का शौकीन, धनवान, त्यागी, स्वरूपवान, ठंड से डरने वाला, सर्दी की व्याधि से ग्रस्त, विशाल परिवार वाला, और बार-बार सुख की चिन्ता करने वाला होता है। इसकी २०वें वर्ष में शूल व्याधि से मृत्यु की सम्भावना है, इससे बच जाय तो ७०वें वर्ष के भाद्रपद माह में शनिवार को मृत्यु होती है । [४२-४४]
११. कुम्भ- इस राशि में जन्मा व्यक्ति दानेश्वरी, आलसी, कृतघ्न, हाथी या घोड़े जैसी आवाज वाला, मेढ़क जैसी कुक्षिवाला, निर्भीक, धनवान, जड़-दृष्टि, चंचल हस्त, पुण्यवान, स्नेहरहित और मान तथा विद्या प्राप्ति के लिये निरन्तर प्रयत्न करने वाला होता है। इसकी १८वें वर्ष में बाघ से मृत्यु की सम्भावना है, इससे बच जाय तो ८४ वर्ष तक जीवित रहता है। [४५-४७]*
१२. मीन-इस राशि वाले की सभी चेष्टाएँ और व्यवहार अति गंभीर होते हैं तथा वह शूरवीर, वाक्चतुर, उच्च पद प्राप्त और क्रोधी होता है। रणनीति चतुर, त्याग या दान में असमर्थ, कंजूस, गायन-कला-विशारद और भाईबन्धुनों के प्रति वात्सल्य वाला होता है। यह सेवाभावी और तेज गति से चलने वाला होता है । [४८-४६]
हे राजेन्द्र ! मैंने जो मेष आदि राशियों के गुणों का वर्णन किया है, वह सर्वज्ञों द्वारा अपने शिष्यों के समक्ष वरिणत के समान ही है, क्योंकि ज्योतिष, निमित्त आदि अतीन्द्रिय शास्त्र जो बाह्य इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है उन सब का वर्णन सर्वज्ञों द्वारा पहले ही हो चुका है। यदि किसी स्थान पर कोई बात न मिले या विपरीत प्रतीत होती हो तो उसे जानने वाले की बुद्धि-अल्पज्ञता का दोष ही समझना चाहिए, क्योंकि अल्पज्ञान वाले लोग शास्त्रों की गहराई और सूक्ष्मता को नहीं समझ सकते । ऐसी स्थिति में यदि क्रूर ग्रहों की दृष्टि न पड़ी हो और राशियाँ बलवान् हों तो उपरोक्त गुण सत्य/खरे ही उतरते हैं, अन्यथा नहीं होते, ऐसा आप समझे । [५०-५३]
राजा जीमूत ने ज्योतिविद् के उपरोक्त कथन को सत्य और शंकारहित होकर स्वीकार किया। फिर सिद्धार्थ ज्योतिषी का सन्मान कर, पूजन कर और उचित दान देकर उसको विदा किया। उचित समय पर प्रानन्द महोत्सव और भोजन एवं दानपूर्वक मेरा नाम घनवाहन रखा गया।
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