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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
जानकारी प्राप्त हो तब जो पक्ष बलवान लगे उसे ग्रहण करना । व्यवहार-शास्त्र में कहा है :
दो भिन्न-भिन्न कार्यों के सम्बन्ध में जब मन में शंका उत्पन्न हो तब सर्वदा थोड़े समय तक मिथुनद्वय के दृष्टान्त के समान कालक्षेप करना चाहिये । [१]*
यह सुनकर मध्यमबुद्धि बोला - माताजी ! मिथुनद्वय की कथा कैसी है ? तब सामान्यरूपा ने कहा कि पुत्र ! तू मिथुनद्वय की कथा सुनमिथुनद्वय की अन्तर्कथा
एक तथाविध नामक नगर है। वहाँ ऋतु नामक राजा राज्य करता है। उसके प्रगुणा नामक रानी है। इन के कामदेव जैसा रूप और सुन्दर आकृति वाला मुग्ध नामक एक पुत्र है। इस राजकुमार के रति जैसी लावण्यवती अकुटिला नामक पत्नी है । मुग्धकुमार और अकुटिला का परस्पर बहुत प्रेम था। अनेक प्रकार से इन्द्रिय-सुखों का उपभोग करते हुए वे अपना समय व्यतीत कर रहे थे । अन्यदा वसंत ऋतु के एक सुन्दर प्रभात में मुग्धकुमार अपने महल के बराण्डे में आनन्द पूर्वक सृष्टि-सौन्दर्य देखते हुए खड़ा था, तभी दूर से मनोहर विकसित विविध प्रकार के पुष्पों और हरियाली से छाये हुए अपने बगीचे को देखकर उसमें क्रीडा करने की उसकी इच्छा हुई । अतः अपनी स्त्री अकुटिला से बोला-देवि ! आज इस उद्यान की शोभा कुछ विशेष ही बढी हुई लगती है, चलो हम फूल एकत्रित करने. के बहाने वहाँ अानन्द-क्रीडा करें। अकूटिला ने उत्तर दिया, जैसी प्राणनाथ की प्राज्ञा । तत्पश्चात् हीरों से जडित स्वर्ण की पुष्प टोकरियाँ लेकर वे दोनों बगीचे में गये और फल चनने लगे। फल चुनते-चुनते मुग्धकुमार ने कहा-प्रिये ! देखें हम दोनों में कौन पहले फूलों से अपनी टोकरी भरता है ? तू दूसरी तरफ जा, मैं इस तरफ जाता हूँ । अकुटिला ने उसकी बात स्वीकार की। पुष्प चुनते-चुनते वे एक दूसरे से बहत दूर निकल गये। बीच में बड़ी-बड़ी झाड़ियाँ होने से वे एक दूसरे की दृष्टि से ओझल हो गये। कालज्ञ और विचक्षणा की करतूत
उसी समय उस प्रदेश पर एक व्यन्तर युगल उड़ता हुआ पाया था। उसमें जो पुरुष था उसका नाम कालज्ञ और स्त्री का नाम विचक्षणा था। वे दोनों जब आकाश में विचरण कर रहे थे तब इन्होंने इस मनुष्य-युगल को उद्यान में फूल चुनते हए देखा। कर्मों की परिणति अचिन्त्य होने से मनुज दम्पति की अत्यधिक सुन्दरता के कारण, कामदेव द्वारा अविचारित कार्य करवाने के कारण, बसन्त ऋतु का समय मन्मथ का उद्दीपक होने से, वन प्रदेश की रमणीयता से, व्यन्तरों का क्रीडा-प्रिय स्वभाव, इन्द्रियों की अत्यधिक चपलता, विषयाभिलाष की दुनिवारिता,
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