Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ५ : नर-नारी शरीर-लक्षण
मनस्वी पुरुष की दृष्टि (आंख की पुतली) नील कमल की पंखुड़ी जैसी काली और मनोहारी होती है। मधु या दीपशिखा जैसी पीली दृष्टि भी प्रशस्त मानी जाती है। बिल्ली जैसी कजरी अांख पापी की होती है। सीधी दृष्टि, वक्र दृष्टि, भयंकर दृष्टि, केकरा (टेढ़ी) दृष्टि, दीन दृष्टि, अत्यन्त रक्त दृष्टि, रुक्ष दृष्टि और काले तथा पीले रंग की मिश्रित प्रांख खराब मानी जाती है। भाग्यशाली पुरुषों की अांख काले कमल जैसी होती है, लम्बे आयुष्य वाले की दृष्टि गम्भीर होती है, भोगी की दृष्टि विशाल होती है और अल्पायुषी की आंखें उछलती हुई सी लगती हैं। काने से अन्धा अच्छा, बाडी प्रांख वाले से काना अच्छा, डरपोक दृष्टि वाले से अन्धा, काना तथा बाडा भी अच्छा । अस्थिर और बिना कारण सतत चलने वाली आंखें, लक्ष्यहीन आंखें, रुक्ष-शुष्क और मलिन अांखें पापी मनुष्य की होती हैं । पापी नीची दृष्टि से, सरल व्यक्ति सीधी दृष्टि से और भाग्यशाली ऊंची नजर रखकर चलता है तथा बार-बार क्रोध करने वाला टेढ़ा-मेढ़ा देखा करता है । [१२१-१२६]
सम्माननीय और सौभाग्यशाली मनुष्य की भौंहें लम्बी और विस्तीर्ण होती हैं। जिसकी भौंहें छोटी होती हैं वह स्त्री सम्बन्धी किसी बड़ी आपत्ति में गिरता है। [१२७]
धनवान व्यक्ति के कान पतले, चौड़े और लम्बे होते हैं। चूहे जैसे कान वाला व्यक्ति बुद्धिशाली होता है और जिसके कान पर अधिक रोंयें होते हैं वह लम्बी आयुष्य वाला होता है । [१२८ ]
जिस पुरुष का ललाट विशाल और चन्द्र की आभा जैसा उज्ज्वल होता है वह सम्पत्तिशाली होता है, जिसका ललाट अधिक बड़ा होता है वह दुःखी होता है और जिसका ललाट छोटा होता है उसकी आयुष्य थोड़ी होती है। [१२६]
___जिस पुरुष के सिर के बांयी तरफ बालों में वामावर्त (बांयी ओर घूमने वाला) भौंरा होता है वह लक्षणरहित, क्षुधा-पीड़ा से घर-घर भीख मांगने वाला होता है, फिर भी उसे लूखे-सूखे टुकड़े ही मिल पाते हैं। जिस पुरुष के सिर के दायी तरफ दक्षिणावर्त (दांयी ओर घूमने वाला) भौंरा होता है उसके हाथ में लक्ष्मी दासी की तरह रहती है । जिस पुरुष के बांये भाग में दांयी ओर घूमने वाला भौंरा हो अथवा दांये भाग में बांयी ओर घूमने वाला भौंरा हो वह अपने जीवन के अन्तिम भाग में भोग भोगेगा इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। [१३०-१३२] *
जिस पुरुष के बाल दूर-दूर, रूखे और मैले हों, वह दरिद्री होता है । जिसके बाल कोमल और चिकने हों वे सुख देने वाले होते हैं । अग्नि जैसे रंग के बाल वाला व्यक्ति विविध क्रीड़ा करने वाला होता है। [१३३]
* पृष्ठ ४७७
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