Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति भव-प्रपंच कथा
हैं । फिर मैं तो प्रकट रूप में भी मुनि वेष में था, धर्मी था । ये दुर्भागी लोग मुझ सोभागी को देख भी सकते थे, तब भी तुम लोगों ने मुझे दुर्भागी क्यों कहा ? किस लिये मेरी निन्दा की ? [ २४६ - २५१]
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१६. पारमार्थिक आनन्द
[ धवल राजा और सभाजनों को अपने स्वरूप का दर्शन कराते हुए बुधाचार्य संसारी जीवन की अधमता और साधु जीवन की महत्ता पर प्रकाश डाला । संसारी जीवों की झूठी समझ को दूर करने के कारणों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी प्रकार उनकी निन्दा करना उचित नहीं था । ]
सांसारिक सुख
उन्होंने कहा—हे राजन् ! जिनवचनामृत-रहित पामर प्राणी इस संसार के गर्भ में भटकते हैं, कर्म-परम्परा रूपी रस्से से निरन्तर बंधते हैं, विषयों को भोगने पर भी तृप्ति न होने से विषय बुभुक्षा से पीड़ित रहते हैं, विषयेच्छा रूपी तृषा से प्यासे रहते हैं, निरन्तर भवचक्र में भटकते हुए थक कर खिन्न हो जाते हैं, कषायाग्नि से प्रतिदिन दहकते रहते हैं, मिथ्यात्व रूपी कोढ से ग्रस्त रहते हैं, ईर्ष्या शूल से बिंधते रहते हैं, संसार में दीर्घकाल तक निवास होने के कारण वृद्धावस्था से जीर्ण हो जाते हैं, राग ज्वर से धधकते हैं, * कामवासना रूपी काचपटल से अन्धे हो जाते हैं, भाव-दरिद्रता से प्राक्रान्त हो जाते हैं, जरा रूपी राक्षसी से पराभव प्राप्त करते हैं, मोहान्धकार से आच्छादित रहते हैं, पांच इन्द्रियों के घोड़ों से खींचे जाते हैं, क्रोधाग्नि में पकते रहते हैं, मान पर्वत से स्तब्ध रहते हैं, माया जाल से वेष्टित रहते हैं, लोभ समुद्र में डूबते रहते हैं, इष्ट-वियोग की वेदना से सन्तप्त रहते हैं, अनिष्ट के संयोग से परितप्त होते हैं, कालपरिणति के वशीभूत इधर से उधर डोलते रहते हैं, लम्बे समय तक बड़े कुटुम्ब के भरण-पोषण से बार-बार संत्रस्त होते हैं, कर्म रूपी कर्जदारों से बार-बार लांछित होते हैं, महामोह की दीर्घ निद्रा से सब से पीछे रह जाते हैं और अन्त में मृत्यु रूपी मगरमच्छ के ग्रास बनते हैं । हे राजन् ! यद्यपि ये संसारी प्रारणी वीणा, मृदंग आदि के मधुर स्वर सुनते हैं, नेत्रों को प्राकृष्ट करने वाले विभ्रम, विलास एवं कटाक्ष युक्त मनोहर रूप देखते हैं, अच्छी
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