Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 943
________________ १६२ उपमिति-भव-प्रपंच कथा भूषण कुमार ! हम पर कृपा कर आप यह देश छोड़कर शीघ्र ही चले जायें, इसमें तनिक भी विलम्ब न करें।' [२४८-२४६] हरिकुमार की प्रारणरक्षा : पलायन दमनक ने आकर कुमार को सब समाचार कहे । सुनकर कुमार के पेट का पानी भी नहीं हिला । मामा का या मौत का उसे किंचित् भी भय नहीं हुआ। फिर भी उसके मानस में वृद्ध मंत्री सुबुद्धि के प्रति बहुत आदर था, अतः उसके आग्रह को ध्यान में रखकर, समुद्र पार कर स्वदेश जाने का उसने तुरन्त निश्चय कर लिया। हे भद्रे ! निर्णय करते ही हरिकुमार ने मुझे अविलम्ब एकान्त में बुलवाया और अत्यन्त विश्वासपूर्वक मेरे सामने सब वृत्तान्त कह सुनाया कि राजा ने बिना कारण उस पर द्वष किया है और मंत्री के परामर्श एवं निर्देश के अनुसार वह इसी समय समुद्र पार कर भारतवर्ष/स्वदेश लौट जाना चाहता है। मित्र धनशेखर ! मैं तेरा विरह क्षण भर भी सहन नहीं कर सकता, अतः तुम भी मेरे साथ चलने के लिये तैयार हो जाओ। [२५०-२५३] कुमार का निर्णय सुनकर मैंने अपने मन में विचार किया कि बड़े आदमी के साथ मैत्री करने का यह फल है। मैं तो यहाँ रत्न राशि एकत्रित करने आया था मगर जब से इसकी मित्रता हुई तब से इस काम में विघ्न ही पड़ा। अब इसके साथ इतनी गहन मित्रता हो गई है कि छोड़ते भी नहीं बनता । मुझे उसके साथ जाना ही पड़ेगा । अन्य कोई बहाना नहीं चलेगा। [२५४] __ऐसा सोचकर मैंने प्रकट में कुमार से कहा -- भाई ! आपकी जैसी इच्छा, इसमें मुझे क्या कहना है । मेरा उत्तर सुनकर कुमार प्रसन्न हुआ। फिर वह बोला--मित्र ! कोई सुदृढ़ जहाज जो तैयार हो और अभी रवाना होने वाला हो तो उसका पता लगायो। मैंने रत्न का बहुत बड़ा भण्डार इकट्ठा किया है उसको लेकर शीघ्र ही जहाज में बैठ जायें। मैंने कुमार के निर्णय को शिरोधार्य किया। तुरन्त ही मैं समुद्र के किनारे गया और सर्व सामग्री से सम्पन्न और अत्यधिक सुदृढ़ दो बड़े जहाज ढढ निकाले । एक जहाज में कुमार के रत्न भर दिये और दूसरे जहाज में मैंने मेरे रत्न भर दिये। यह सब तैयारी गुप्त रूप से चल रही थी तभी संध्या हो गई । अन्धेरा होने पर किसी परिजन को संदेह न हो इस प्रकार चुपचाप मयूरमंजरी और वसुमती को साथ लेकर हरिकुमार और मैं समुद्र किनारे पहुँचे। वहाँ हमने जहाजों और उनके कर्मचारियों की खूब अच्छी तरह से जांच की। रात्रि का प्रथम प्रहर बीतने पर रमणी के कपोल जैसा पाण्डुरंग का चन्द्र आकाश में उदित हुआ। उसी समय समुद्र में खलबली मची, जल-जन्तुओं के शोर के साथ ही समुद्र में ज्वार आ गया। कुमार Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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