Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव ६ : समुद्र से राज्य-सिंहासन
अपनी पत्नी के साथ अपने जहाज में बैठा और मैं अपने जहाज में बैठने जा ही रहा था कि कुमार बोला-भाई धनशेखर ! तुम भी मेरे जहाज में ही आ जाओ, मुझे तुम्हारे बिना एक क्षण भी नहीं सुहाता, अर्थात् तुम्हारे बिना एक पलभर भी मैं अकेला नहीं रह सकता।
मित्र हरिकुमार के प्राग्रह से मैं भी कुमार के जहाज में बैठ गया। जहाज में प्रवेश करने के बाद मांगलिक शकुन किये गये। चालकों ने अपने स्थान ग्रहण किये। पाल खोले गये और उसमें हवा भरते ही हमारे जहाज चलने लगे। जहाज चलतेचलते आगे बढ़ रहे थे। इस प्रकार कुछ दिन व्यतीत हुए और हमने भारत की तरफ जाने का अधिक भाग समुद्र मार्ग से पार कर लिया। धनशेखर का हरिकुमार को समुद्र में फैकना
हे अगहीतसंकेता! जिस समय हमारी यात्रा आनन्दपूर्वक चल रही थी उसी समय मेरे दोनों पापी अन्तरंग मित्र सागर और मैथुन एक साथ उपस्थित होकर मुझे अन्दर से प्रेरित करने लगे। पहले पापकर्मी सागर ने अपना रोब जमाया। उसने मुझे उकसाया कि ऐसा रत्नों से भरा हुआ जहाज कभी दूसरों के हवाले किया जा सकता है ? पाप-प्रेरक सागर की आंतरिक प्रेरणा से मेरे मन में विचार आया कि, अहा ! मेरे भाग्य तो वस्तुतः अतिशय प्रबल हैं। मेरा एक जहाज तो रत्नों से भरा हुआ है ही, अब यह रत्नों से भरा हुआ कुमार वाला* दूसरा जहाज भी मुझे मिल जाय तो मेरे मन के समस्त मनोरथ पूर्ण हो जायें।
[२५५-२५७] उसी समय मेरे दुरात्मा मित्र मैथुन ने भी मुझे आन्तरिक प्रेरणा दी । मेरे मन में धन सम्बन्धी पाप तो पहले से ही भरा था उसमें इस दुष्ट बुद्धि ने और वृद्धि की। उसने मुझे उकसाया कि इस अत्यन्त पृथुस्तनी, विशाल नेत्रों वाली, पतली कमर वाली, सूकोमला, मोटे नितम्ब वाली, गजगामिनी, लावण्यामृत से ओत-प्रोत, महास्वरूप वाली मयरमंजरी की तुलना में दूसरी स्त्री इस विश्व में मिलना असंभव है । जब तक तूने उसके साथ कामसुख नहीं भोगा तब तक तेरा जन्म व्यर्थ है, तेरा जीवन निष्फल है। अत: इस आकर्षक नेत्रों वाली ललना को तुझे सब से अधिक बहुमूल्य मानना चाहिये और किसी भी प्रकार उसे अपने वश में करना चाहिये ।
[२५८-२६१] मैथुन की इस प्रेरणा से प्रेरित होकर मैंने सोचा---एक तो रत्नों से भरा हुआ कुमार वाला जहाज मुझे प्राप्त करना है और दूसरे मयूरमंजरी को अपनी अंकशायिनी बनाना है। इस प्रकार करने से मुझे धन प्राप्ति के साथ स्त्री-संभोग का आनन्द भी प्राप्त होगा। परन्तु, जब तक हरिकुमार जीवित है तब तक मुझे इन
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